Monday 2 April 2018

Ghalib - Aariz e gul dekh, roo e yaad aayaa Asad / आरिज़ ए गुल देख याद आया असद - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 42.
आरिज़ ए गुल देख, रू ए याद आया 'असद '
जोशिश ए फ़स्ल ए बहारी इश्तियाक अंगेज़ है !!

Aariz e ghul dekh, roo e yaad aayaa 'Asad '
Joshish e fasl e bahaaree ishtiyaaq angez hai !!
- Ghalib.

आरिज़           - कपोल, गाल.
जोशिश          - उबाल, उफान, तीव्रता.
फ़स्ल ए बहारी - बसंत का मौसम
इश्तियाक़       - इच्छाएं, कामनाएं, लालसा. उत्कण्ठा.
अंगेज़            - उठाने वाला, उभारने वाला.

पुष्प के कपोल को देख कर मुझे अपनी प्रेयसी का स्मरण हो आया. वसंत ऋतू का यह उन्माद, मेरी कामनाओं को तीव्र करने वाला है ।

बसंत अनेक उत्कण्ठायें ले कर आता है. कामनाओं को उभारने वाली यह ऋतु ऐसे ही ऋतुराज नहीं कही जाती है. शीत के बाद जब मौसम थोडा गर्म होने लगता है तो शीत जनित स्वाभाविक जड़ता मन और तन दोनों ही की धीरे धीरे क्षरित होने लगती है. पुष्प खिलने लगते हैं. हवा में मादकता छाने लगती है. कितना कुछ बसंत पर लिखा गया है ! कालिदास से ले कर कीट्स तक, चंद बरदाई से लेकर रवीन्द्रनाथ टैगोर तक सबको बसंत के आगमन ने प्रेरित किया है. उर्दू साहित्य में इस फ़स्ल ए बहाराँ , बहारों की ऋतु पर बहुत ही उच्च कोटि की रचनाएं की गयी है. ग़म यानी जीवन के चिरंतन दुःख की व्याख्या करता हुआ उर्दू साहित्य ऋतुराज पर लिखे गए सन्दर्भों से भरा पड़ा  है. अपनी नाज़ुक खयाली के लिए प्रसिद्ध यह साहित्य बहुत ही समृद्ध है.  ग़ालिब को उपवन में खिले पुष्प पर अपनी प्रेमिका के कपोल नज़र आते है. चेतन और अवचेतन में पडी प्रेमिका की याद हर अवसर पर कहीं न कहीं आ ही जाती है. बसंत उत्कण्ठायें ही नहीं, अभिलाषाएं भी लाता है. इसी की और ग़ालिब इंगित करते हुए कहते हैं , बसंत का यह आगमन उनकी इच्छाओं , कामनाओं और अभिलाषाओं में वृद्धि करेगा  यह कामनाओं का ही कमाल है कि विकसित पुष्प की पंखुड़ियाँ उन्हें अपनी प्रेमिका के कपोल की तरह कोमल और आकर्षक लगती हैं. यह श्रृंगार का संयोग पक्ष है या वियोग पक्ष इस पर सुधीजन मीमांसा करते रहेंगे. पर यह एक आशावाद भी है. प्रेमिका, लक्ष्य है, और बसंत अवसर . विकसित पुष्प के दल प्रेरक. यह प्रेरक भाव ही लक्ष्य की और अग्रसर करेगा. पर कोई भी अभियान विपरीत परिस्थितियों में बाधित होता है. अब बसंत जो अवसर के रूप में आया है, लक्ष्य की और बढ़ने और उसे प्राप्त करने की और सहायक होगा.

ग़ालिब बहुत गहरे हैं. जिन खोजा तिन पाइयाँ की तरह से जितनी ही डुबकी लगाई जाती है, उतने ही आयाम दृष्टिगोचर होते हैं. एक और शेर पढ़े,

अदा ए ख़ास से ग़ालिब हुआ है, नुक़्ता सरा,
सला ए आम है, यारा ए नुक़्तादां के लिए !!

ग़ालिब अपनी बात विशिष्ट शैली में अभिव्यक्त कर रहा है. गुणग्राही लोगों को आमंत्रण है कि वह इसे सुने. "

© विजय शंकर सिंह 

No comments:

Post a Comment