Sunday 8 April 2018

आरक्षण का आधार क्या हो ? आर्थिक या जातिगत पिछड़ापन ? एक छोटी सी कहानी जो सच्ची घटना है / विजय शंकर सिंह


आरक्षण का अधिकार जातिगत नहीं बल्कि आर्थिक हो। यह बात पहले भी कही जा रही थी और अब भी कही जा रही है। पर क्या आर्थिक संपन्नता से जातिगत ऊंच नीच की ग्रन्थि दूर हो सकती है, जो सदियों से मन में कहीं बैठ गयी है। मेरा उत्तर है नहीं। जातिगत स्वाभिमान इस ग्रन्थि को दूर नहीं होने देता। अम्बेडकर के दलित चेतना के पीछे आरक्षण का मूल उद्देश्य सत्ता में भागीदारी है। सत्ता में आये दलित अधिकार और आर्थिक रूप से सम्पन्न हो तो जातें हैं, पर वे, वह जातिगत स्वाभिमान कहाँ से लायें जो जन्मना कुछ को प्राप्त है। यह सामाजिक विषमता कैसे दूर होगी यह मैं नहीं बता पाऊंगा।
***
यह सच्चा किस्सा मेरे मित्र देव प्रकाश मीणा ने बताया है। यह घटना राजस्थान की एक सच्ची घटना है। इस मानसिकता का क्या करे । आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग करने वालों के लिए, यह कथा कुछ सोचने के लिये बाध्य करेगी।

जयपुर के पास फागी तहसील में किसी गाँव में एक दलित सिविल कॉन्ट्रैक्टर ने स्कूल के सभी बच्चों एवं स्टाफ के लिए भोज का आयोजन किया.
ध्यान दीजिएगा, वो आर्थिक रूप स्व सक्षम था, पूरी स्कूल के लिए भोज का आयोजन कर रहा था।
उसका बेटा भी स्कूल में पढ़ता था, वो खुश था कि उसके पापा स्कूल को जिमवा रहे हैं।
बच्चा खुशी से लड्डू पूड़ी आदि परोसने के लिए बर्तन उठाता है। तभी हैडमास्टर #शर्मा जी की नजर पड़ जाती है उस लड़के पर, हैड मास्साब को गुस्सा आ गया, जोर से गाली दी उसे और थप्पड़ मारा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई खाने के बर्तन के हाथ लगाने की ?
जबकि उसी लड़के के पिताजी के पैसे से सारा आयोजन हो रहा था।
लेकिन खाना बनाने वाले से लेकर परोसने वाले तक तथाकथित उच्च जाति के लोग थे।
अब ये बात लड़के के पिताजी को तो पता थी लेकिन बच्चा क्या जाने कि वो तथाकथित ढेढ़, चमार बैरवा है।

इस केस में गरीब ब्राह्मण भी पूज्य हैं और उन्हें खाना खिलाने वाला बैरवा आर्थिक रूप से सक्षम होने के बाद अछूत, हीन भावना से ग्रस्त है साथ ही उसके साथ सामाजिक भेदभाव भी हो रहा है।
***

No comments:

Post a Comment