Friday 13 April 2018

धार्मिक कट्टरता - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

इस्लाम को जिस प्रकार से उग्र और कट्टर वहाबी स्वरूप ने दुनिया मे एक घृणा का पात्र बना कर रख दिया है । इसी विपरीत भाव के कारण  Islamophobia इस्लामोफोबिया,  जैसा शब्द शब्दकोश में आ गया है।
उसी प्रकार हिंदुत्व की कुछ सालों से पनप रही, उग्र और कट्टर विचारधारा, सनातन धर्म की उदात्त परम्परा का नाश कर देगी।

लेकिन, इस्लाम एक वाद विवाद संवाद रहित रेजिमेंटल धर्म ( यह सभी सेमेटिक धर्मो की समस्या है ) होने के कारण वहाबियों के चंगुल में जल्दी आ गया। उदार इस्लाम, ( सूफीवाद ) जिसकी परम्पराएं कम समृद्ध नहीं थी, एक जुट हो कर, पुरजोर इस कट्टरता का विरोध नहीं कर सका। उन्होंने कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ खड़े होने की कोशिश की। पर वे उतना प्रबल और सतह पर दिखे, ऐसा विरोध नहीं कर सके। हालांकि बहुत से प्रबुद्ध और नामचीन लेखकों, शायर ने खुल कर इस्लाम की कट्टरता को अपनी रचनाओं में निशाने पर लिया है। सोशल मीडिया के आगमन से वह विरोध अब दिखने भी लगा है। आज इस्लाम का जो कट्टर और हिंसक स्वरूप दिख रहा है उसका एक बड़ा कारण,  वहाबिज़्म भी  है।

जब कि सनातन परंपरा में वाद विवाद और संवाद को न केवल उचित स्थान प्राप्त है बल्कि यह शास्त्र सम्मत भी है । मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना और कस्मै देवाय हाविष्यामि, नचिकेता के सवाल और जवाब, के कारण,  विरोध करने, विपरीत मतवाद स्थापित करने की एक दीर्घ परम्परा भी है। इस वैचारिक बहस की परंपरा के कारण लोग कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ जम कर खड़े हो जाते हैं। इस विरोध की खीज, हिंदुत्व बिग्रेड की भाषा शैली में साफ साफ देखी जा सकती है।

सभी धर्मों में पौरोहित्यवाद, धर्म को जड़ और अपरिवर्तनीय सोच तथा, उस पर कुंडली मार के बैठे रहने की मानसिकता से ग्रस्त रहता है। यह उसका स्थायी भाव बन गया है। यही जड़ पौरोहित्यवाद धर्मो की मूल आत्मा का शत्रु है।

इसलिये, हर प्रकार की कट्टरता का विरोध कीजिये। यह समाज, मानवता और संसार के लिये बहुत बड़ा खतरा है।

© विजय शंकर सिंह

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