Wednesday 4 April 2018

3 अप्रैल, फील्ड मार्शल मानेकशॉ के जन्मदिन दिन पर उनसे जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग / विजय शंकर सिंह


1971 का भारत पाक युद्ध, भारत के सैन्य इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। यह विजय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति, कूटनीतिक कौशल, और अदम्य नेतृत्व का परिणाम तो है ही पर तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मानेक शॉ की भी इस विजय में महती भूमिका थी। मानेकशॉ से जुड़ा यह प्रसंग पढ़ें, इससे उनके व्यक्तित्व के एक नये पक्ष का दर्शन होता है । यह प्रसंग,  एक मित्र ने बात चीत में बताया है। यह फील्ड मार्शल मानेक शॉ के इंटरव्यू का एक अंश है ।

युद्ध समाप्त हो गया था। बांग्लादेश एक आज़ाद और संप्रभु देश के रूप में  अस्तित्व में आ चुका था। भारत ने एक आज़ाद मुल्क के रूप में उसे मान्यता दे दी थी। भारत के तत्काल बाद भूटान ने भी मान्यता दे दी । बड़ी ताक़तों में सबसे पहले सोवियत रूस ने मान्यता दी । फिर धीरे धीरे उसे दुनिया भर के अन्य देशों ने स्वीकार किया। पाकिस्तान ने बंगबन्धु शेख मुजीबुर्रहमान की दुःखद हत्या के बाद जो सत्ता पलट हुआ उसके बाद मान्यता दी थी।  उस युद्ध मे 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिक बंदी बनाये गए थे। पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी भी युद्ध बंदी थे। युद्धबंदी सामान्य कैदी नहीं होते हैं । उनकी सुख सुविधा के लिये जेनेवा कन्वेंशन ने कुछ निर्देश दिये हैं जिनके अनुसार दुनिया भर के देश उसी निर्देशों के अनुसार युद्धबंदियों को कैद करते हैं और उसी के अनुसार इन कैदियों की देखभाल की जाती है। जनरल नियाज़ी तो दिल्ली स्थित कैंट में एक सैनिक अतिथि गृह में बंदी थे लेकिन 93 हज़ार की बड़ी फौज जो आत्मसमर्पण के बाद भारत मे युद्धबंदी के रूप में थी उसे विभिन्न शहरों में जहां बड़े कैंटोनमेंट थे वहां रखा गया था। ऐसा ही एक कैम्प इलाहाबाद में भी था जहां ये बंदी रखे गये थे।

फील्ड मार्शल मानेकशॉ किसी कैंटोनमेंट में अपनी विदाई परेड पर आये थे। उसी कैंट में ये युद्धबंदी भी रखे गये थे। मानेकशॉ ने युद्धबंदियों की व्यवस्था देखने की इच्छा व्यक्त की। वे, सभी अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ वहां गए। वे वहां के बैरक का निरीक्षण कर के मेस की ओर गए तो वहां पाकिस्तानी सेना का एक सूबेदार मेजर मिला। मानेकशॉ के सामने उसे पेश किया गया और सामान्य सैनिक अभिवादन के बाद मानेक शॉ ने उस से कैम्प में सुख सुविधाओं के बारे में पूछा। यह एक रूटीन पूछताछ होती है । फौज या पुलिस का जब भी कोई वरिष्ठ अधिकारी किसी कैंप का निरीक्षण करता है तो वह रहने, खाने पीने की व्यवस्था के बारे में जवानों से ज़रूर बातचीत करता है और समस्याओं के समाधान के लिये जरूरी निर्देश भी देता है। इसी प्रकार इस निरीक्षण में भी उन्होंने पाकिस्तानी सेना के जवानों से पूछताछ की और उनसे हल्की फुल्की बात की तथा फिर सबसे हांथ मिलाया। पंक्तिबद्ध हो कर जब वे जवानों से हाँथ मिला रहे थे तो थोड़ा पीछे एक जवान जो सफाईकर्मी था वह खड़ा था। फील्ड मार्शल ने अपना हाँथ उसकी तरफ भी बढ़ाया तो वह सावधान की मुद्रा में तो खड़ा रहा पर उसने हांथ नहीं बढ़ाया। मुस्कुराते हुए मानेकशॉ ने उससे कहा कि तुम हाँथ नहीं मिलाओगे ? इस पर सूबेदार मेजर ने कहा  कि
" जनाब यह सफाई करता है । जमादार है।"
मानेकशॉ ने आगे बढ़ कर उसके कंधे पर हांथ रखा और उससे फिर हाँथ मिलाने के लिये कहा। अब उसने प्रसन्नता से हाँथ मिलाया। सब खड़े थे। युद्धबंदी कोई रैंक बैज नहीं लगाते हैं तो इस से यह भी पता नही चलता कि कौन किस रैंक का है। थोड़ी बहुत बात चीत के बाद जब मानेकशॉ अपनी कार की ओर बढ़े तो अचानक पाकिस्तानी सूबेदार मेजर फील्ड मार्शल के एडीसी को थोड़ा अलग हटाते  हुए उनके सामने आया और कहा कि,
" जनाब आप क्यों जीते और हम क्यों हारे यह हम आज समझ गए। "
मानेकशॉ सहित सभी रुक गए। मानेकशा ने उसे पास बुला कर कहा, कि
" कैसे समझे और क्या समझे। "
तब उस सूबेदार मेजर ने कहा,
" हुज़ूर हम तो आप के कैदी हैं। हम दुश्मन मुल्क के हैं। फिर भी आप यहां आए । हमारे कैंप को देखा और हमारी ज़रूरियात पूछी। हम आप के शुक्रगुज़ार हैं। जहां आप जैसे फौज के जनरल हैं वह फौज शिकस्त नहीं खा सकती है। "
मानेकशॉ ने कुछ नहीं कहा । बस मुस्कुराए और अपनी कार में बैठ गए।

पाकिस्तान सरकार ने जब 1971 की शर्मनाक पराजय के बाद जस्टिस हमीदुर रहमान कमीशन का गठन किया तो पाकिस्तान की हार के अनेक कारणों में उसने एक कारण यह भी बताया कि पाक सेना की राजनैतिक महत्वाकांक्षा और जनरल अय्यूब और फिर जनरल याहिया खान के फौजी शासन के कारण पाक सेना ने खुद को पाकिस्तान की राजनीति में एक विशेष दर्जा दे दिया। पाकिस्तानी सेना और सेना के बड़े अफसर न केवल राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे बल्कि वे विदेशों से बड़े बड़े आर्थिक और व्यापारिक सौदे भी करने लगे। सेना एक राजनैतिक और व्यावसायिक प्रतिष्ठान में बदलने लगी और इस से न केवल अनुशासन और रेजीमेंटेशन पर असर पड़ा बल्कि उसके बड़े अफसर भ्रष्ट और अय्याश भी हो गए। हमीदुर रहमान कमीशन ने खुद हैरानी जताई कि 93,000 की फौज के बाद भी पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने कैसे आत्मसमर्पण कर दिया । नेट पर इस कमीशन की रिपोर्ट उपलब्ध है। उसे पढ़ कर आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि जब कोई सेना अनुशासन, कर्तव्यपरायणता और अपना पेशेवराना अंदाज़ छोड़ देती है तो कैसे वह पराजित हो जाती है।

सौभाग्य से भारतीय सेना इस व्याधि से बहुत दूर है। हमारी सेना न केवल अराजनैतिक संगठन है बल्कि पेशेवराना अंदाज़ में यह दुनिया की सबसे अच्छी सेनाओं में से एक है। आज फील्ड मार्शल सैम हुर्मुसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ का जन्मदिन है। वे अब नहीं रहे। दिनांक 27 जून 2008 को उनका निधन हो गया।
उनका विनम्र स्मरण !!

© विजय शंकर सिंह

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