Monday 1 January 2018

शायर अनवर जलालपुरी का निधन - एक श्रद्धांजलि / विजय शंकर सिंह

शायर अनवर जलालपुरी का निधन हो गया है। वे अम्वेडकर नगर के रहने वाले थे और उर्दू के एक ख्यातनाम शायर थे। उनका जन्म 6 जुलाई 1947 को हुआ था। शेर, ग़ज़ल और नज़्मों के अलावा उनका सबसे बड़ा योगदान है कि उन्होंने भगवद्गीता का  उर्दू में अनुवाद किया । गीता के अनुवाद के समय उन्हें जो कठिनाइयां हुयी, उसके बारे में बताते हुये उन्होंने कहा है कि ~
"मैंने संस्कृत का श्लोक पढ़ा. ज़ाहिर है श्लोक तो सौ फ़ीसदी मेरी समझ नहीं आया, लेकिन उसका नीचे जो हिंदी अनुवाद था उसको मैंने पढ़ा. फिर मैंने उसी श्लोक का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद भी पढ़ा. अनुवाद पढ़ने के बाद मैने इन श्लोकों की पूरी व्याख्या पढ़ी. जिन लोगों की टीका मैंने पढ़ी उनमें ओशो रजनीश, महात्मा गांधी, विनोवा भावे और बाल गंगाधर तिलक शामिल हैं । इसके बाद मेरे  मन में गीता के हर श्लोक का सारांश बना, जिसे मैने कविता का रूप दिया."

आगे वे कहते हैं ~
"पिछले 200 सालों के दौरान कविता के रूप में गीता के करीब दो दर्जन अनुवाद हुए हैं, पर पुराने ज़माने की उर्दू में फ़ारसी का असर ज़्यादा होता था. गीता का एक अन्य उर्दू अनुवाद ख़्वाज़ा दिल मोहम्मद का है, जो पंजाब में काफ़ी मशहूर हुई थी। मगर वह आसान उर्दू में नहीं थी, इसलिए उत्तर भारत में लोकप्रिय नहीं हो सकी."

गीता के कर्मयोग को अनवर ने अपनी शायरी में कुछ यूं पेश किया है,

नहीं तेरा जग में कोई कारोबार, अमल के ही ऊपर तेरा अख्तियार.
अमल जिसमें फल की भी ख़्वाहिश न हो, अमल जिसकी कोई नुमाइश न हो.
अमल छोड़ देने की ज़िद भी न कर, तू इस रास्ते से कभी मत गुज़र.
धनंजय तू रिश्तों से मुंह मोड़ ले, है जो भी ताल्लुक उसे तोड़ ले.
फ़रायज़ और आमाल में रब्त रख, सदा सब्र कर और सदा ज़ब्त रख.
तवाज़ुन का ही नाम तो योग है, यही तो ख़ुद अपना भी सहयोग है.

भगवद्गीता के इस उर्दू अनुवाद की पुस्तक का विमोचन मुरारी बापू ने किया है। पुस्तक में उर्दू अनुवाद को देवनागरी लिपि में उर्दू के शब्दों के अर्थ भी दिये गए हैं । इस अनुवाद के अतिरिक्त उन्होंने उर्दू गज़लों की कई पुस्तकें भी लिखी हैं और मुशायरों में वे अपने समय के बहुत लोकप्रिय शायर भी थे । अपनी शायरी या काव्य प्रतिभा के बारे में वे खुद ही यह रुबाई कहते हैं,

कबीरो तुलसी ओ रसखान मेरे अपने हैं।
विरासते ज़फरो मीर जो है मेरी है।
दरो दीवार पे सब्जे की हुकूमत है यहाँ,
होगा ग़ालिब का कभी अब तो यह घर मेरा है।
मैंने हर अहेद की लफ्जों से बनायीं तस्वीर।
कभी खुसरो, कभी खय्याम, कभी मीर हूँ मैं।

शायर अनवर जलालपुरी को उनके दुःखद निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि ।

© विजय शंकर सिंह

No comments:

Post a Comment