Sunday 12 November 2017

जय सियाराम और जय श्री राम - संदर्भ चित्रकूट विधान सभा चुनाव परिणाम - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

जय सियाराम और जय श्री राम दो सम्बोधन हैं । जय सियाराम सबका है और जय श्री राम कुछ लोगों ने अघोषित रूप से पेटेंट करा लिया है । जय सियाराम ही उचित और सार्वलौकिक संबोधन है । चित्रकूट का तो यही प्रिय और सर्वमान्य संबोधन है । फिर भी जिसे जो कहना हो वह कहे। कोई प्रतिबंन्ध नहीं है । वाल्मीकि तो मरा मरा रट कर अमर हो गए !

तुलसी की मानें तो,
सियाराम मैं सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरि जुग पानी।
तुलसी ही नहीं राम कथा का कोई भी ग्रन्थ कार बिना सिया के राम का अस्तित्व ही नहीं मानता है । सच तो यह है कि, बिना पत्नी के राजा का राज्याभिषेक भी शास्त्र मान्यता नहीं देता है। पत्नी नहीं है तो पत्नी की प्रतिमा आवश्यक होती है। इसी लिये यह भी कहा गया है कि,
जाके प्रिय न राम वैदेही,
तजिये ताहि कोटि बैरी सम,
जद्यपि परम् सनेही !
यहां भी राम और वैदेही को साथ साथ प्रेम करने को ही मान्यता दी गयी है । भारतीय मनीषा में शिव भी शक्ति के बिना शव हो जाते हैं।

यह प्रसंग याद आया चित्रकूट विधान सभा से बीजेपी की हार पर कुछ खबरों को पढ़ कर । यह विधान सभा क्षेत्र यूपी एमपी के सीमा पर मध्य प्रदेश में हैं और यहां एमपी के सीएम शिवराज चौहान के द्वारा जबरदस्त चुनाव प्रचार के बावजूद  भाजपा हार गयी । भाजपा या संघ परिवार के लोग अक्सर राम के सम्बंध में जय श्री राम का नारा लगाते हैं। जो वस्तुतः एक राजनीतिक संकेत देता है न कि धार्मिक आस्था बताता है । लेकिन जय सियाराम एक लोकघोष है। यह किसी भी संगठन या दल के राजनीतिक एजेंडे का प्रतीक नहीं है।

चित्रकूट में राम ने अपने बनवास की एक लंबी अवधि व्यतीत की है । प्रयाग से जब वे भारद्वाज मुनि के आश्रम से चले तो उन्हें यही मुनि ने सुझाव दिया था कि वह चित्रकूट के सुरम्य वन पर्वत प्रांतर में ही अपने वनवास का समय बिताएं । वे जब यहां आए तो यही ठहर ही गये।  मंदाकिनी के किनारे उनके पद चिह्न एक शिला पर पंडित जी दिखाते हैं । हम सब उस चरण कमल पर शीश नवाते हैं । यह लोक श्रुति है । जन विश्वास है । अरसे तक यही सम्बोधन समाज मे व्याप्त रहा । गांव में बचपन मे भगवती माई के मंदिर में जब रमरम्मी यानी रामचरित मानस का पाठ होता था जो यही घोष समवेत निकलता था, बोलो सियाबर रामचन्द्र की जय । तब राम किसी राजनीति के मोहरे नहीं बने थे । वे सबके आराध्य थे और इक़बाल के भी इमाम ए हिन्द थे ।

पर अचानक जय श्री राम का उदघोष जय सियाराम का स्थानापन्न हो गया, और अचानक यह नारा हिन्दू , ( हिंदुत्व वाला हिन्दू ) होने का एक प्रमाण पत्र बन गया । फिर भी राम तो राम ठहरे । चाहे उन्हें अकेले गोहराइये या सिया के साथ । उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। अगर हम उन्हें ईश्वर मानते हैं तो वे अचिन्त्य हो जाते हैं । निंदा और स्तुति से परे हो जाते हैं । पर चित्रकूट में तो वे सिया के ही साथ थे । सीता वियोग भी उन्हें तभी झेलना पड़ा जब वे चित्रकूट से प्रस्थान कर दक्षिण की ओर गये । फिर जब लौटे भी तो पत्नी की छुड़ा और शत्रु का नाश कर के ।

चित्रकूट विधान सभा के चुनाव पर दो बेहद खूबसूरत शेर मैं साझा कर रहा हूँ,

आलम में जिसकी धूम थी उस शाह_कार पर
दीमक ने जो लिखें , कभी वो तब्सिरें भी देख़ !!
( शकेब जलाली )
एक और है,
हज़ार साल तो रहता नही उबूरी दौर
फ़साद खूब उगाओं , कि रौशनी क़म है !!
( शाद आरफ़ी )

© विजय शंकर सिंह

1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर लिखा। मैं तो कहता हूँ जय श्रीराम का नारा अमेरिका का दिया हुआ है जिससे उनकी बंदूक़ें बिकें।

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