Tuesday 14 November 2017

14 नवम्बर, जन्मदिन - जवाहरलाल नेहरू , एक स्मरण / विजय शंकर सिंह

                                                                              
आज जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है । उनका यह उद्धरण उनकी प्रसिद्ध पुस्तक " हिंदुस्तान की कहानी " "The Discovery Of India " से लिया गया है । यह उद्धरण उनकी दृष्टि को परिभाषित करता है ।  नेहरू द्वारा लिखी गयी अनेक किताबों में से, उनकी यह किताब सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है । भारत की विशाल सोच, दर्शन, महान संस्कृति की पड़ताल करने की उनकी यह कोशिश है । नेहरू इतिहास के कोई विद्यार्थी नहीं थे। वे के एक वकील थे जो बाद में राजनीति में आये।  वे कोई अकादमिक शख्सियत नहीं थे, न ही इतिहास के मौलिक शोधकर्ता, अपितु उन्होंने सार्वजनिक जीवन मे आने के बाद भारत से जो उनका संवाद हुआ, लोगों से जो उनकी सम्प्रेषणीयता बनी, जैसा भारत उन्होंने देखा और महसूस किया वैसा उन्होंने अपनी खूबसूरत शैली में पन्नों पर उतार दिया । उन्होंने इतिहास नहीं लिखा है और न ही ऐतिहासिक तिथिक्रम क्रोनोलॉजिकल chronological , जैसा उबा देने वाला कोई  विवरण दिया हैं पर इतिहास के सभी कालों, सभी स्तरों, दर्शन की सभी आयामों को समेटने का एक प्रयास किया है । उनकी यह पुस्तक पठनीय है । नेहरू का अध्ययन, लेखन, सोच और भारत के प्रति उनकी दृष्टि इस पुस्तक में प्रतिविम्बित हुयी है।

नेहरू, एक राज नेता थे, स्वाधीनता संग्राम के सेनानी थे, कांग्रेस के उस ऐतिहासिक अधिवेशन में अध्यक्ष हुए थे, जिसमें कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास कर के ब्रिटेन को स्पष्ट संकेत दे दिया था कि उन्हें अब यहाँ से रुखसत होना ही होगा । वह दिन था 26 जनवरी 1930 का जब पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य का जश्न मनाया गया था । यही दिन 26 जनवरी 1950 को संविधान अंगीकार करने के बाद हमारा गणतंत्र दिवस बना । नेहरू ने अपने जीवन के लगभग 9 साल कारागार में काटे है । न वे अकेले स्वाधीनता सेनानी थे और न ही यह आज़ादी उनका ही इकलौता प्रयास है, बस वह उस महान यज्ञ के एक कार्यकर्ता थे जो हमारी आज़ादी के लिये आहूत हो रहा था । 

उन्होने लिखा है,
" अकाल और लड़ाई चाहे हो या न हों लेकिन अपने जन्मजात अंतर्विरोधों से पूर्ण और उन्हीं विरोधों और उनसे प्रतिफलित विनाशों से पोषण पाती हुई जीवन की धारा बराबर चालू रहती है| प्रकृति अपना कायाकल्प करती है और कल के लड़ाई के मैदान को आज फूलों और हरी घास से ढकदेती है,और पहले जो खून गिरा था,वह अब जमीन को सींचता है और नए जीवन को रंग,रूप और शक्ति देता है|इंसान,जिसमे याददाश्त का गैरमामूली गुणहोता है,गुजरे हुए ज़माने की कहानियों और घटनाओं से चिपटा रहता है|वह शायद ही कभी मौजूदा वख्त के साथ चलता हो,जिसमें वह दुनिया है,जो हर रोज नई ही दिखाई देती है|मौजूदा वख्त,इससे पहले कि हमको उसका पूरा होश हो,गुजरे ज़माने में खिसक जाता है;आज,जो बीती हुई कल का बच्चा है,खुद अपनी जगह अपनी संतान,आने वाली कल को दे जाता है|मार्के की जीत का ख़ात्मा खून और दलदल में होता है,मालूम पड़ने वाली हार की कड़ी जाँच में से तब उस भावनाका जन्म होता है जिसमे नई ताकत होती है और जिसके नजरिये में फैलाव होता है|कमजोर भावनावाले झुक जाते हैं,और वे हटा दिए जाते हैं,लेकिन बाकी लोग प्रकाश ज्योति को आगे ले चलते हैंऔर उसे आने वाले कल के मार्गदर्शकों को सौंप देते हैं| "
( हिंदुस्तान की कहानी )

नेहरू का विरोध और उनके एडविना के साथ मित्रता को ले कर अक्सर दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग उनकी आलोचना करते रहते हैं । जब कि वास्तविकता यह है कि वे मानसिक रूप से रुग्ण हैं। कुंठित है । आत्मरति में सुख खोजते है । वर्जनाओं से मुक्त होने का साहस नहीं है उनमें। यह एक प्रकार की क्लीवता है । उनसे गांधी की बात कीजिये । वे सम्पूर्ण गांधी वांग्मय जो 101 खण्डों का है में उन्हें गांधी के सेक्स के प्रयोग के संदर्भ ही याद आएंगे । उनसे नेहरू के लिखे साहित्य पर चर्चा कीजिये उन्हें नेहरू के पूरे जीवन मे एडविना से जुड़े सम्बन्ध याद आएंगे । यह एक प्रकार की ग्रन्थि है । अगर आप फ्रायड को पढ़े होंगे तो इसे आसानी से समझ लेंगे । गांधी नेहरू ने उनका खेल जो वे जिन्ना के साथ मिल कर खेलना चाहते थे उसे बिगाड़ दिया था। जिन्ना ने अधिसंख्य मुस्लिम आबादी को तो सम्मोहित कर लिया था । चाहते तो ये भी थे कि मुस्लिम राष्ट्र की तरह यहां भी हिन्दू राष्ट्र बन जाय । पर सनातन संस्कृति की आत्मा जो अनेकता में एकता है और जो इसकी जिजीविषा है को यह समझ नहीं पाए। इस्लाम एक रेजिमेंटल धर्म है जब कि सनातन धर्म कभी रेजिमेंटल धर्म रहा ही नहीं है और इसी कारण यह एक जीवन पद्धति है , कोई पंथ नहीं है, यह सूक्ष्म भाव यह न तब समझ पाए और न अब । गांधी का करिश्मा, नेहरू की लोकप्रियता और पटेल की लौह इच्छा शक्ति ने भारत को जिस पथ पर आगे बढाया वह पथ न इन्हें तब रास आया था और न अब रास आ रहा है । ये बार बार 1947 के पहले अपने तय किये एजेंडे पर लौट जाना चाहते हैं। पर तब से गंगा और यमुना में बहुत पानी बह चुका है । समय बढ़ गया है । वे न गांधी को पढ़ते हैं, न नेहरू को, यहां तक कि पटेल को भी नहीं, अम्वेडकर का नाम लेना इनकी मज़बूरी है पर रिड्ल्स इन हिन्दूइज़्म पढ़ते ही यह फिर ' जैसे थे ' हो जाते हैं । 

' वे ' से मेरा तात्पर्य उस दक्षिणपंथी विचारधारा से है जो यूरोपीय फासिज़्म की सोच से देश मे अंकुरित हुयी,  जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एक शब्द भी कभी नहीं कहा, अपितु उनके कृपापात्र ही बने रहे और धर्म के मिथ्या आवरण को ही धर्म समझते रहते हैं । 

आज़ादी के बाद वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने । आज जवाहरलाल नेहरू की जन्म तिथि पर उनका विनम्र स्मरण । 

© विजय शंकर सिंह

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