Thursday 3 August 2017

' अज्ञेय ' की एक कविता - सावन मेघ / विजय शंकर सिंह

घिर गया नभ्, उमड़ आये मेघ काले,
भूमि के कम्पित उरोजों पर झुका - विशद, श्वासाहत, चिरातुर छा गया इंद्र का नील वक्ष-वज्र-सा,
यदि तड़ित से झूलता हुआ-सा ।
आह मेरा श्वास उत्तप्त- धमनियों में उमड़ आयी लहू की धार-
प्यार है अभिश्प्त : तुम कहाँ हो नारि ?
मेघ व्याकुल गगन को मैं देखता था,
वन विरह के लक्षणों की मूर्ति-
सूक्ति की फिर नायिकाएँ,
घुमड़ती थीं बादलों में आदर, कच्ची वासना के धूम सी।
जब कि सहसा तड़ित के आघात से घिर कर
फूट निकला स्वर्ग का आलोक ।
बाह्य देखा :
स्नेह से आलिप्त , बीज के भवितव्य से उत्फुल्ल,
बद्ध वासना के पंक से फैली हुयी थी
धारयित्री-सत्य-सी निर्लज्ज, नंगी, औ'समर्पित ।

#अज्ञेय, सच्चिदानंद वात्स्यायन (7 मार्च, 1911-4 अप्रैल, 1987) को प्रतिभासम्पन्न कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर नामक ऐतिहासिक स्थान में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एस.सी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकडे गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन्1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकुकविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे ।
#vss

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