Saturday 6 May 2017

Ghalib.- Ahal e beenees ko, hain toofaan e hawaadid, / अहले बीनीस को, हैं तूफ़ान ए हवादिस - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह





ग़ालिब -24.
अहले बीनीस को, हैं तूफ़ान ए हवादिस, मकतब
लतम ए मौज, कम अज, सेलिये उस्ताद नहीं !!

बीनीस - बुद्धिमान, या विवेक वान. 
तूफ़ान ए हवादिस - हादसों या खतरों का तूफ़ान. हवादिस हादसा का बहुवचन है. 
मकतब - विद्यालय.
लतम ए मौज - लहरों के थपेड़े. 
सेली - थप्पड़, तमाचा. 

Ahal e beenees ko, hain toofaan e hawaadid, maqtab
Tatam e mauz, kam az selee e ustaad naheen hai !! 
-Ghalib. 

विपत्तियाँ, विवेकशील व्यक्तियों के लिए, कुछ न कुछ सीख का अवसर लेकर आती हैं. विपत्तियों के तूफ़ान उनके लिए शिक्षा देने वाले विद्यालयों की तरह होते हैं. हादसों के तूफ़ान के थपेड़े, किसी गुरु द्वारा मारे गए चांटे या थप्पड़ से कम नहीं हैं जो शिष्य को कुछ न कुछ सिखला देते हैं. 

जीवन में विपत्तियाँ , हादसे, खतरे न आयें यह सम्भव ही नहीं है. जब तक जीवन है, विपत्तियाँ आयेंगी ही. सागर कभी शांत तो कभी उद्वेलित, तो कभी उच्छ्रिखल हो जाता है. पर उस बेहद असामान्य अवसर पर ही धैर्य की परीक्षा सम्भव है. धीरज की परीक्षा आपात काल में ही होती है. विवेकशील और धैर्यवान व्यक्ति इन्ही विपत्तियों के तूफ़ान से कुछ न कुछ सीखता है. और न सिर्फ उस विपत्ति से पार भी पाता है बल्कि भविष्य के लिए सचेत भी रहता है. इस थपेड़ों की तुलना ग़ालिब, अध्यापक या गुरु द्वारा पाठशाला में लगाए गए चांटो या थप्पड़ से करते हैं, जो तात्कालिक कष्ट तो देते हैं, पर वह कुछ न कुछ मार्गदर्शन भी करते है. विपत्तियों के तूफ़ान के लहरों के थपेड़े, उसी गुरु के तमाचे के समान है. 

यह ग़ालिब का आशावाद है. विपातियों से घबराने, टूटने और बिखरने के बजाय वह उस से कुछ सीखने की बात करते है. मुश्किलें उनके जीवन में बहुत आयीं. हर तरह की चुनौती का उन्होंने सामना किया. आर्थिक तंगी से वे जूझे, सामाजिक प्रतिष्ठा पर उनके आंच आयी, सब कुछ उन्होंने झेला. तभी तो उनके मुंह से निकला, मुश्किलें इतनी पडीं मुझ पर कि आसाँ हो गयी. 
( विजय शंकर सिंह )

No comments:

Post a Comment