Wednesday 25 January 2017

एक कविता - तुमने तो कहा था / विजय शंकर सिंह

तुम ने तो कहा था ,
भेजोगे ,
वे लम्हे , घड़ियाँ , साल, सभी
होगा नहीं , जिन का ,
अंत कभी .

सावन की ,
काली घटायें भी ,
फूलों की ,
शोख अदाएं भी ,
अधरों से छू कर ,
पुष्प कोई ,
मीठी सी गुड की
डली कोई !

सभी किस्से , गीत
और बातें भी ,
वे प्रेम भरी ,
सौगातें भी .
तुम ने तो कहा था ,
भेजोगे !

पा कर इन को हम ,
झूमेंगे ,
दुनिया , इन में हम ,
ढूंढेंगे !
एक दीप आस का ,
कब से जला कर ,
चुप चाप प्रिये , हम
बैठें हैं !

कुछ याद करो ,
वे बीते पल ,
तुम को है , क़सम ,
अब भेजो भी !
लुछ मोल , प्यार का
रखो भी !

इक बात सुनो ,
खुद आ जाओ !
बन के घटा , तुम
छा जाओ !!
जीवन के इस मरू में ,
कुछ पुष्प बिखेरो आज प्रिये !!

© विजय शंकर सिंह

No comments:

Post a Comment