Saturday 7 January 2017

पद के दुरुपयोग के आरोप में आरबीआई के गवर्नर पर मुकदमा क्यों न चलाया जाय ? / विजय शंकर सिंह

यह मैं नहीं कह रहा हूँ । यह कहा है संसद की लोक लेखा समिति या Public Accounts Committee PAC ने । यह एक संवैधानिक समिति है जो सरकार से विभिन्न मामलों पर विचारोपरान्त पूछ ताछ करती है । इसका अध्यक्ष विपक्षी दल का कोई सांसद होता हैं। सीएजी की सभी ऑडिट रिपोर्ट इस समिति को भेजी जाती है और वह उसका पड़ताल कर सरकार से पूछ ताछ करती है या रिपोर्ट मांगती है । इस समिति के वर्तमान अध्यक्ष हैं कांग्रेस के सांसद केवी थॉमस । समिति ने 28 जनवरी को आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल को समिति के समक्ष उपस्थित हो कर यह बताने को कहा है कि,
" अगर नकदी निकालने पर पाबंदी लगाने को लेकर कोई कानून नहीं है तो उन पर ”शक्तियों का दुरुपयोग करने के लिए” मुकदमा क्‍यों न चले और उन्‍हें हटाया क्‍यों न जाए। "
पीएसी ने यह भी जानना चाहा है कि
कितनी नकदी पर प्रतिबंध लगा था और उसमें से कितनी बैंकिंग व्‍यवस्‍था में लौट आई है।

समिति ने आरबीआई के गवर्नर से 10 प्रश्न भी पूछे हैं । इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, वे इस प्रकार हैं ।
1. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सदन में कहा है कि नोटबंदी का फैसला आरबीआई और इसके बोर्ड द्वारा लिया गया था। सरकार ने सिर्फ सलाह पर कार्रवाई की। क्‍या आप सहमत हैं?
2. अगर फैसला आरबीआई का ही था, तो आखिर कब आरबीआई ने तय किया कि नोटबंदी ही भारत के हित में हैं?
3. रातोरात 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने के पीछे आरबीआई ने क्‍या कारण पाए?
4. आरबीआई के अपने अनुमान दिखाते हैं कि भारत में सिर्फ 500 करोड़ रुपए की नकली/जाली करंसी है। जीडीपी के मुकाबले भारत में कैश 12 फीसदी था जो कि जापान (18%) और स्विट्जरलैंड (13%) से कम है। भारत में मौजूद नकदी में उच्‍च मूल्‍य के नोटों का हिस्‍सा 86% था, लेकिन चीन में 90% और अमेरिका में 81% है। तो, अचानक ऐसी क्‍या जरूरत आ पड़ी थी कि आरबीआई को विमुद्रीकरण का फैसला लेना पड़ा?
5. 8 नवंबर को होने वाली आपातकालीन बैठक के लिए आरबीआई बोर्ड सदस्‍यों को कब नोटिस भेजा गया था? उनमें से कौन इस बैठक में आया? कितनी देर यह बैठक चली? और बैठक का ब्‍योरा कहां है?
6. नोटबंदी की सिफारिश करते हुए कैबिनेट को भेजे गए नोट में, क्‍या आरबीआई ने साफ-साफ लिखा था कि इस फैसले का मतलब देश की 86 प्रतिशत नकदी को अवैध करना होगा? आरबीआई उतनी ही नकदी कब तक व्‍यवस्‍था में लौट सकेगी?
7. सेक्‍शन 3 c(v) के तहत 8 नवंबर, 2016 को आरबीआई की अधिसूचना द्वारा बैंक खातों से काउंटर के जरिए 10,000 रुपए प्रतिदिन और 20,000 रुपए प्रति सप्‍ताह निकासी की सीमा तय कर दी गई। एटीएम में भी 2,000 रुपए प्रति दिन निकासी की सीमा लगाई गई। किस कानून और आरबीआई को मिली शक्तियों के तहत लोगों पर अपनी ही नकदी निकालने पर सीमा तय की गई? देश में करंसी नोटों की सीमा तय करने की ताकत आरबीआई को किसने दी? अगर ऐसा कोई नियम आप न बता सकें, तो क्‍यों न आप पर मुकदमा चलाया जाए और शक्‍त‍ियों का दुरुपयोग करने के लिए पद से हटा दिया जाए?
8. पिछले दो महीनों से आरबीआई के रेगुलेशंस में बार-बार बदलाव क्‍यों हुए? कृपया हमें उस आरबीआई अधिकारी का नाम बताएं जिसे निकासी के लिए लोगों पर स्‍याही लगाने का विचार आया? शादी से जुड़ी निकासी वाली अधिसूचना किसने तैयार की थी? अगर यह सब आरबीआई ने नहीं, सरकार ने किया था तो क्‍या अब आरबीआई वित्‍त मंत्रालय का एक विभाग है?
9. कितने नोट बंद किए गए और पुरानी करंसी में से कितना वापस जमा किया जा चुका है? जब 8 नवंबर को आरबीआई ने सरकार को नोटबंदी की सलाह दी तो कितने नोटों के वापस लौटने की संभावना थी?
10. आरबीआई ने आरटीआई के तहत जानकारी देने से मना क्‍यों किया है, वह भी निजी चोट का डर जैसा कारण बताकर? आरटीआई के तहत मांगी जाने वाली जानकारी देने को आरबीआई क्‍यों नहीं दे रहा?

आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल 28 जनवरी को पीएसी के समक्ष क्या उत्तर प्रस्तुत करते हैं यह देखना भी दिलचस्प होगा । देश की मौद्रिक नीति के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार आरबीआई को है । वह एक स्वायत्त संस्थान है । उसकी स्वायत्तता इस लिए बनायी गयी है ताकि देश के आर्थिक स्वास्थ्य को देखते हुए वह उचित और प्रोफेशनल निर्णय ले सके । सरकार ऐसे निर्णय जो लोक को तत्काल कष्ट दे रहे हों को लेने से कतराती भी रहती है पर आरबीआई की ऐसी कोई बाध्यता नहीं है । वर्तमान नोटबन्दी के संदर्भ में चर्चा करें तो, यह स्पष्ट है कि आरबीआई ने जिस तरह से लगातार अपने आदेशों निर्देशों को जारी किया है , और फिर संशोधित , पुनः संशोधित , रद्द किया है इस से उसकी साख पार बहुत बुरा असर पड़ा है । ऐसे समय में जब हम विदेशी निवेश लाने के लिए मोक्ष प्राप्ति की तरह सन्नद्ध हैं तो इस प्रकार के फैसले से देश की अफरातफरी भरी अर्थ व्यवस्था का ही सन्देश विश्व के निवेशकों पर जाएगा । इसका असर जीडीपी पर भी पड़ना शुरू हो गया हैं । आंकड़े लाख मायाजाल या झूठ का पुलिंदा कह कर खारिज किये जाते रहें पर जब भी निवेश या मूल्यांकन का समय आएगा तो इन्ही आंकड़ों के आधार पर योजनाएं बनायी जाएंगी और बनायी जाती रहती हैं । समिति के समक्ष उर्जित पटेल क्या कहते हैं यह तो अनुमान लगाना फ़िलहाल कठिन है, पर यह निश्चित है कि वे उन सवालों और उन पर उठने वाले पूरक प्रश्नों से असहज भी होंगे । उन परिस्थितियों का खुलासा देश के समक्ष होना चाहिए , जिन के कारण 8 नवम्बर को रात 8 बजे अचानक एक घोषित हुयी और उसे मास्टरस्ट्रोक कहा गया । साहसिक कदम कहा गया । पर अब यह साहसिक कदम आत्मघाती दिख रहा है और मास्टर स्ट्रोक बॉउंड्री पर कैच हो गया है ।

ज्ञातव्य है कि सरकार या आरबीआई को मौद्रिक प्रतिबंध लगाने की शक्तियां हैं , पर वह तभी लगाई जा सकती है जब कोई आपात स्थिति आ गयी हो । संविधान आपात काल लगाने की अनुमति देता है । और उन आपात परिस्थितियों में मौलिक अधिकारों तक को प्रतिबंधित करने की शक्ति सरकार के पास है । पर यह सारी बातें जनता के समक्ष रखनी होती हैं । ऐसा नही कि किसी शाम सरकार को इलहाम हो जाय और वह नशे की पिनक में बिना तैयारी के ही एक ऐसा आर्थिक निर्णय ले ले जिस से देश की अर्थ व्यवस्था पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ने लगे । फिर उस कुप्रभाव की बौखलाहट में या तो रोना धोना शुरू हो जाय, या मसखरेपन का प्रदर्शन , या मुद्रा उपलब्ध न करा पाने की खीज में कैशलेस या लेसकैश के जुमले या यह न कर पाऊं तो मार देना, वह न कर पाऊं तो जला देने का विक्षिप्त प्रलाप करना । प्रधानमंत्री जी की बौखलाहट, देहभाषा, भाषण, आदि का अगर थोडा सा भी मनोवैज्ञानिक अध्ययन आप करें तो स्पष्ट समझ लेंगे कि वे अस्थिर हो चुके हैं । ऊहापोह की स्थिति में सभी से गलतियां होती हैं और वे भी इंसान ही हैं । नोटबंदी होनी चाहिए थी या नही यह तो आर्थिक इतिहास के अध्येता अनंत काल तक शोध करते रहेंगे पर इस के जो कुप्रभाव पड़ रहे हैं फिलहाल सरकार को उससे निबटने के लिए स्थिर और हठ योग से बाहर आ कर प्रयास करना होगा । कुहरा अब भी है । धुंध और ठंडक में सूरज की प्रतीक्षा अक्सर बेसब्री से ही होती है ।

( विजय शंकर सिंह )

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