Saturday 19 November 2016

24 जून 1984, श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ केदार नाथ में - एक संस्मरण / विजय शंकर सिंह



24 जून 1984 तब इंदिरा जी जीवित थीं इंदिरा गांधी अक्सर बद्री केदार की यात्रा पर आती रहती थी इस दिन भी वे केदार नाथ की यात्रा पर आयीं थीं उनकी इस यात्रा के समय मैं वहाँ ड्यूटी पर था वे मुझे नहीं जानती थीं मैं उस समय मथुरा में डीएसपी के पद पर नियुक्त था उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री के तब बहुत दौरे होते थे और उनकी सुरक्षा के प्रबन्ध यूपी पुलिस करती थी मथुरा से मैं उस ड्यूटी के लिए गढ़वाल के लिए गया था जब मैं गोपेश्वर पहुंचा तो वहाँ पता लगा कि मुझे केदारनाथ जाना है उस समय चमोली के एसपी रामेश्वर दयाल सर थे मैं 14 जून को पहुंच गया था पहले प्रधानमंत्री का कार्यक्रम 17 जून को ही था पर वह कार्यक्रम बदल कर 24 जून का हो गया 14 से 24 तक , वह भी पहाड़ों पर क्या किया जाय यह भी संभव नहीं कि हरिद्वार या देहरादून जाया जाय , क्यों कि तब ऐसी ड्यूटियों में मीटिंग भी बहुत होती थी गोपेश्वर में  उस दिन रुक कर मैं जोशीमठ गया 15 की रात मैं जोशीमठ में ही एसपीएफ के एक मेस में रुका 16 को दिन भर रहा और उसी दिन शंकराचार्य जी के आश्रम में भी गया जब बद्री नाथ के कपाट बंद हो जाते हैं तो बद्रीनाथ जी की पूजा अर्चना जोशीमठ में ही होती है वही उसी मठ में ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के दर्शन हुए 16 की रात जोशीमठ में बिता कर सुबह ही मैं बद्रीनाथ के लिए निकल गया  

दोपहर तक बद्रीनाथ पहुंचा उस दिन और रात बद्रीनाथ में ही बीती 17 को दोपहर के बाद आस पास के स्थानों पर घूमने की इच्छा हुयी वहाँ से 4 किमी दूर माणा गाँव है वहाँ हम आये माणा, भारत का आखिरी गाँव है उसके बाद कोई गाँव नहीं हैं। पर चीन सीमा पर आईटीबीपी और एसपीएफ की पोस्ट रहती है एसपीएफ उत्तर प्रदेश पीएसी की ही एक बटालियन थी जो  पहाड़ों पर चीन की सीमा पर नियुक्त रहती थी 9 वीं बटालियन अभी भी मुरादाबाद में है पर उसका विशेष दर्ज़ा अब नहीं रहा वह भी सभी बटालियनों की तरह से पीएसी की एक बटालियन बन गयी

माणा गाँव समुद्र से 3219 मीटर ऊंचाई पर स्थित है गाँव से सटी एक जलधारा बहती है जिसे सरस्वती नदी कहा जाता है यहां के निवासी भोटिया कहे जाते हैं यह हिमालय का भोट खंड है माणा के बारे में कहा जाता है कि यह पांडवों के स्वर्गारोहण मार्ग पर भी स्थित है यहॉँ स्थित एक पत्थर के पुल को भीम पुल कहते हैं यहां एक बड़ा हेलीपैड भी था अब सुनता हूँ वह एक छोटी हवाई पट्टी हो गयी है माणा से शाम तक बद्रीनाथ और रात बद्रीनाथ में ही एक धर्मशाला में जो पुलिस अफसरों के लिए ही अधिग्रहीत थी में व्यतीत हुयी

18 नवम्बर को सुबह बद्रीनाथ  दर्शन के बाद वहाँ से चल दिया और रास्ते में थोड़ी देर के लिए जोशीमठ में रुकने के बाद फिर हम गोचर पहुंचे और वही स्थित वन विश्राम गृह में रात रुक गए 19 को वहां से सुबह चल कर गौरीकुंड से 8 किमी पहले एक स्थान फाटा में रुक गए गौरीकुंड से केदारनाथ का मार्ग 14 किमी है जिसे लोग पैदल , खच्चरों या पालकी से पार करते हैं फाटा में ही मेरे अभिन्न मित्र काशीनाथ सिंह मिल गए जो शाहजहाँपुर में डीएसपी थे और वह भी उसी ड्यूटी के लिए जा रहे थे फाटा में रात बिताने के बाद हम गौरीकुंड 19 जून को सुबह पहुंचे और तब फिर वहाँ से केदारनाथ के लिए रवाना हुए शाम होते होते 14 किमी पहाड़ी मार्ग पार कर हम लोग जब केदारनाथ पहुंचे तो थक चुके थे अब हमें 24 जून प्रधानमंत्री मंत्री की यात्रा पूरी होने तक वही रहना था हम लोग वही एक धर्मशाला में रुके वहाँ 5 और अधिकारी भी थे

20 तारीख की सुबह बहुत चटख थी केदार नाथ मंदिर के पीछे बर्फ से ढंका पहाड़ था कहते हैं उसी के पीछे बद्रीनाथ भी हैं उस पर्वत को नर नारायण पर्वत कहते हैं यह भी कहा जाता है कि इन्ही पहाड़ों से हो कर साधू और महात्मा लोग बद्रीनाथ आतें जाते हैं दिन भर हम खाली रहते थे 20 से 23 जून तक मंदिर के इर्द गिर्द टहलना और केदारनाथ के दर्शन करना यहीं काम था दिन में एक बार सारे अधिकारियों की मीटिंग होती थी जिसका उद्देश्य केवल यह था कि हम सब यह भी समझते रहें कि हम यहां तीर्थाटन करने नहीं बल्कि सरकारी काम से आये हैं वहाँ पर पीएसी की कम्पनियाँ तैनात थी खाना पीना उन्ही के साथ होता था दिन भर यात्रीगण आते रहते थे वहाँ एक छोटा सा बाज़ार भी बस गया था शाम को पहाड़ों का मौसम थोडा धुंधला और बरसाती हों जाता है पहाड़ी मौसम की सुबह और चटख धूप को देख कर यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है , कि शाम तक बारिश हो जायेगी पर तीन चार बजते बजते एक झटका बारिश का जाता और शाम ठंडी हो जाती 23 को ड्यूटी का रिहर्सल हुआ और मेरी ड्यूटी केदारनाथ के गर्भ गृह में लगाई गयी वहाँ मुझे अकेले ही रहना था

24 तारीख को सुबह 8 बजे से ही हम सब ड्यूटी पर गए थे उस दिन सुरक्षा कारणों से गौरीकुंड से ही यात्रियों के केदारनाथ की और आने पर रोक लगा दी गयी थी मंदिर के अंदर और भी पुलिस जन थे पर गर्भ गृह में मैं अकेले ही था केदारनाथ की भी एक कथा है वहाँ शिव लिंग का स्वरूप जैसा कि अन्य शिव मंदिरों में होता है वैसा नहीं था वह एक भैंसे की पीठ की तरह है  वही के एक स्थानीय पंडित जी ने इस सन्दर्भ में एक रोचक कथा सुनायी किंवदंति है कि, पांडव जब केदार क्षेत्र में जा रहे थे तो वें उस स्थान पर पहुंचे वह स्थान मन्दाकिनी नदी के किनारे है गढ़वाली भाषा में दलदल को केदार कहते हैं वही पर भीम का मार्ग एक भैंसे ने रोक लिया भीम ने भैंसे को बल से हटाने का प्रयास किया तो भैंसे ने भीम भर हमला कर दिया भीम देर तक, कहा जाता है कि 3 दिन तक वे उस से लड़ते रहे और थकने लगे भीम के शरीर में साठ हज़ार हाथियों का बल था, ऐसी मान्यता है भीम जब उस भैंसे को हरा नहीं पाये तो, वे रुक गए और अचंभित भी हुए। तब उन्होंने भैंसे से पूछा कि, तुम हो कौन ? भैंसा, कहा जाता है शिव ही थे वे समझ गए कि उनका भेद खुल गया है तो वे वापस तेजी से पहाड़ों की और भागे। भीम ने दौड़ा कर उनकी पूँछ पकड़ ली वह भैंसा दलदल यानी केदार में समा गया भैंसे का धड़ वही उसी दलदल में धँसा रह गया और , शीष काठमांडू में अवतरित हो गया जो पशुपति नाथ कहलाया वहाँ शिव का यही धड़ स्वरूप है यह कोईँ ऐतिहासिक तथ्य नहीं , बल्कि जो कथा प्रचलित है वह मैं बता रहा हूँ  मंदिर के आसपास और दूर पहाड़ों की तलहटी तक मिटटी मिलती हैऔर दलदली भूमि भी कभी रही हो, ऐसा लगता भी है 

24 जून को भी सूरज वैसे ही चटख धूप ले कर उदित  हुआ 8 बजे से ही हम सब अपनी अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे तब तक प्रधानमंत्री सुरक्षा के लिये ही विशेष रूप से गठित बल एसपीजी, स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप का गठन नहीं हुआ था पीएम की सुरक्षा दिल्ली में दिल्ली पुलिस और राज्यों में राज्य पुलिस के ही जिम्मे था। राज्य पुलिस की जिम्मेदारी भी होती है , पर अब एसपीजी का दखल अधिक होता है। राज्य का  इंटेलिजेंस विभाग उनकी प्रोटेक्शन ड्यूटी में रहता था सुरक्षा के आंतरिक घेरे और आइसोलेशन कॉर्डन में सादे कपड़े में ड्यूटी लगती थी मैं आइसोलेशन कॉर्डन का प्रभारी था मैं खुद गर्भ गृह में रहा और अन्य फ़ोर्स मंदिर के दीवारों के पार थे वहाँ कोईँ खतरा था भी नहीं 10 बजे इंदिरा जी मंदिर आयीं वहाँ उनके द्वारा बाबा का दुग्धाभिषेक किये जाने का कार्यक्रम था व्यवस्था पूरी थी उनके साथ तेज़ी बच्चन, ( अमिताभ बच्चन की माँ ) और सोनिया गांधी थीं उनके शैडो जो दिल्ली पुलिस के ही एक डीएसपी , शर्मा जी थे , वे भी थे गर्भ गृह में यही चार लोग , दो पंडित जी और एक मैं था मंदिर का गर्भ गृह छोटा था सब लोग यथा स्थान बैठ गए और मुझे तो खड़ा रहना था तो मैं वही एक कोने में खड़ा रहा पंडित जी अभिषेक की तैयारी कर चुके थे अचानक वह शर्मा जी की और मुड़े और कहा, कि अभिषेक के लिए पांच  व्यक्ति का होना आवश्यक है शर्मा जी थोडा उठने को हुए ताकि वे किसी और को बाहर से बुला लें तभी इंदिरा जी की निगाह मुझ पर पडी और उन्होंने कहा, ' कम ज्वाइन अस ' मैं चुप चाप जा कर शर्मा जी के बगल में बैठ गया  इंदिरा जी ने मेरा नाम पद और परिचय पूछा। फिर पंडित जी ने पूजा शुरू की और मुझसे नाम गोत्र आदि पूछा मैनें उनसे सब बताते हुए धीरे से कहा कि पंडित जी मैं काशी का हूँ ! फिर पूजा शुरू हुयी और डेढ़ घण्टे में पूरा कार्यक्रम संपन्न हुआ मेरे लिए यह बहुत सुखद क्षण था

पूजा के बाद सब हेलीपैड पर आये हेलीपैड मंदिर से थोड़ी दूर घाटी में ही एक समतल स्थान पर बनाया गया था वहाँ जब इंदिरा जी पहुंची तो किन्ही तकनीकी कारणों से हेलिकॉप्टर के उड़ने में देर है, यह पता लगा लगभग 40 मिनट तक वे वहाँ के मनोरम दृश्यों की फ़ोटो लेती रहीं और अधिकारियो से बात करती रहीं यह उनकी  केदारनाथ की अंतिम यात्रा थी किसे पता था, कि चार महीने बाद उनकी हत्या कर दी जायेगी पर नियति को कौन पढ़ और समझ पाया है आज उनका सौवाँ जन्म दिन है उनका कार्यकाल बहुत उथल पुथल भरा रहा है जितना ही उनकी सराहना हुयी उस से कम उनकी निंदा और आलोचना नहीं हुयी इतिहास निर्मम होता है हमेशा कुछ कुछ नया दृष्टिकोण रखने की सामग्री परोसता रहता है उनकी जन्म तिथि पर उनका विनम्र स्मरण

( विजय शंकर सिंह )

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