Sunday 2 October 2016

एक कविता ..... हम खयाली / विजय शंकर सिंह

हम भी चुरा लेते हैं
तेरी ग़ज़लों से कुछ शोखियाँ
कुछ नर्म एहसास
कुछ नमी भरे अब्र
कुछ नसीम ए सुबह
कुछ शाम के धुंधलके का इश्क़
कुछ रात की बेचैनियां और
कुछ भोर के इश्क़ ए हक़ीक़ी के रेशे ।

चुरा लेता हूँ,
कुछ अलफ़ाज़  
कुछ ख़यालात
और
गढ़ने लगता हूँ
शब्दों का एक संसार ।

भरता हूँ रंग उनमे,
सजाता हूँ, ख्वाब की तरह ,
लिखता हूँ , मिटाता हूँ,
कभी निरखता हूँ दूर से उसे,
तो कभी, आत्म मुग्ध हो,
रू ब रू हो जाता हूँ आईने से ।

मिला कर कुछ अपनी , और
जगबीती कहानियां कहानियां कुछ,
कुछ मुस्कान,
तो कुछ अश्क़ों के रेखाचित्र ,
कुछ संजादगी तो , थोड़ी  शरारतें भी
इस तरह बनाता हूँ,
ज़िंदगी का कॉकटेल मैं !

लफ़्ज़ों और ख्यालों की चोरी भी
कोई चोरी है भला !
यह तो हमजुबानी हुयी
हम खयाली है यह  !!

© विजय शंकर सिंह.

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