Wednesday 7 September 2016

एक कविता...... ख़्वाब / विजय शंकर सिंह

कुछ शब्द गीत बन रहे,
भाव स्वर में ढल रहे,
नयन कुछ कह रहे ,
मन में कुछ उमग रहा ।

कुछ फूट पडा अधरों से,
बिखर गयी केश राशि
नींद आँखों में आयी थी,
वह फिर कहीं खो गयी ।

दूर कहीं,  गजर बजा,
फूट पड़े  स्वर सारे,
खुल गए, वातायन सब,
एक एक कर यादों के ।

रात भर ख्वाब आते रहे !
रात भर ख्वाब जाते रहे !!

© विजय शंकर सिंह.

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