Tuesday 23 August 2016

नर्क पर रार, देशद्रोह का मुक़दमा और द्रोह काल / विजय शंकर सिंह



राम्या एक कन्नड़ अभिनेत्री है । वह कर्नाटक की रहने वाली तथा बेंगलुरु में रहती हैं  उन्होंने यह कह दिया कि पाकिस्तान नर्क नहीं है और वहाँ के लोग हम जैसे ही हैं । इस पर एक मित्र बहुत आहत हो गए, और वे अदालत चले गए । वहाँ उन्होंने देशद्रोह की अर्ज़ी लगाई और राम्म्या पर देशद्रोह धारा 124 अ का मुक़दमा कायम हो गया । उस मुक़दमें में कुछ नहीं होगा यह मैं भी जानता हूँ और वादी मुक़दमा भी जानते हैं और मुल्ज़िम भी जानती हैं । पर एक प्रचार होगा और वह हुआ । राम्या को लोग अधिक जान जाएंगे । वादी मुक़दमा का भी सामाजिक दायरा थोडा बढ़ जाएगा । अदालत तो घोषित अंधे क़ानून की व्याख्या से बंधी ही हुयी है । उसे तो मुक़दमा सुनना ही है सो वह सुनेगी ही । देखिये आगे क्या होता है ।

पाकिस्तान नर्क है या नहीं यह तो पर्रिकर साहब ही बता पाएंगे । क्यों कि नर्क और स्वर्ग के बारे में मुझे कोई अनुभव नहीं है । पाकिस्तान एक पड़ोसी देश है और इसी अज़ीमुश्शान देश का एक बिलगा हुआ भाग है । सैन्धव सभ्यता वहाँ फली फूली और नष्ट हो गयी । आर्य सभ्यता वहाँ जमी बढ़ी और वेदों की ऋचाएं गायी गयी ।  अनेक महान साम्राज्य वहाँ तक पसरे रहे । खैबर पर के आने वाले युयुत्सु आक्रमणकारियों से वहीं पहली लड़ाई होती रही । आज़ादी की लड़ाई में उस हिस्से का भी बराबर योगदान रहा है । पर धर्म के अफीम की पिनक का नशा इतना तेज़ था और इतना मादक था कि मुल्क बँटा और बाद में धर्म की संकीर्णता वहाँ इतनी फैली की अब सच में वहां के लोगों का जीवन नारकीय हो गया । रक्षा मंत्री का आशय भी कदाचित यही रहा होगा कि वहाँ का जीवन नारकीय है । रक्षा मंत्री का यह अपना आकलन है और इस प्रकार का आकलन करने के लिए वह भी औरों की तरह स्वतंत्र हैं ।

राम्म्या का भी अपना आकलन है और वह चूँकि पाकिस्तान की यात्रा कर के आईं थी और वहाँ के लोगों से मिली जुली थीं और लोगों का व्यवहार उन्हें अच्छा लगा तो उन्होंने कह दिया कि वह नर्क नहीं है । मित्र गण धर्म की ग्रंथि से ग्रस्त होते जा रहे हैं । जैसे इस्लाम का एक तबका , अपने धर्म को ही सबसे अच्छा धर्म मानता है, वैसी ही मनोवृत्ति हिदुत्व के कतिपय ठेकेदार  हिन्दू धर्म को इस्लाम के बहाबी सेक्ट के आधार पर ही संगठित कर रहे है । इस्लाम की तरह ही आहत भाव और ईशनिंदा का कुछ न कुछ भाव दिखायी पड़ रहा है । इस्लाम की कट्टरता के पागलपन का क्या परिणाम है यह तो हम देख  रहे हैं और कभी कभी भोग भी रहे हैं। कट्टर इस्लाम के जवाब में कट्टर हिंदुत्व को खड़ा करना किस लक्ष्य की प्राप्ति करायेगा यह तो कट्टर ग्रुप ही बता पायेगा । पर मेरा मानना है कि यह भी एक प्रकार का प्रतिशोधात्मक इलाज़ है जो स्थिति को सिर्फ बिगाड़ेगा ही ।

पाकिस्तान के प्रति हमारे नेताओं की धारणा बदलती रहती है । जब कि पाकिस्तान का हमारे प्रति रवैया बिलकुल नहीं बदलता है । अटल जी ने पुरज़ोर कोशिश की , बस ले कर गए । यह भी कहा कि
" एक समृद्ध और सशक्त पाकिस्तान भारत के हित में हैं । "
" हम दोस्त बदल सकते हैं , पड़ोसी नहीं । "
फिर भी कारगिल हुआ । भारत को बहुत नुकसान उठाना पड़ा । पर हमने लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल नहीं पार की । यह संयम की पराकाष्ठा थी ।
फिर आगरा समिट हुयी । सुना था काफी कुछ तय हो गया था । पर परवेज़ मुशर्रफ जिन्हें दूसरे ही दिन अजमेर ख्वाजा की दरगाह जाना था, रातों रात आगरा से बिना अजमेर गए निकल लिए । कुछ दोस्तों ने कहा कि, अजमेर तो वही जाते हैं जिन्हें ख्वाजा बुलाते हैं । ख्वाजा ने वीसा ही नहीं दिया ।

फिर बात चीत बन्द रही । पर पाक का छद्म युद्ध की योजना चलती रही । वह आतंकी भेजता रहा और हम जूझते रहे ।
एक बार आडवाणी भी गए थे । जिन्ना की मज़ार पर भी तशरीफ़ ले  गए । दो फूल चढ़ाये और कह दिया कि जिन्ना साहब सेकुलर थे । बस फिर क्या था, द्विराष्ट्रवादियों में से एक राष्ट्र वालों को आग लग गयी । आडवाणी चित्त से उतर गए । यह तो उनकी हैसियत थी कि गाड़ी फिर पटरी पर आ गयी, वरना मुश्किल ही था ।

यूपीए के काल में आतंकी घटनाएं होती थी तो जो आज सरकार में हैं उस समय इतना आक्रोशित हो जाते थे कि इनको थामना पड़ता था , डर लगता था कि,  कही बाघा सीमा पार कर एक पर दस के हिसाब से कई ट्रक सर न उठा ले आएं । बड़ी उम्मीद थी कि आये नहीं कि पाकिस्तान बिल में घुसा । देशप्रेम से ओतप्रोत और राष्ट्र निर्माण में दीक्षित लोग हैं । खैर देश के भाग्य बदले और वे आ भी गए ।
पर जो दीखता है वह होता नहीं है । जब आये तो राजसूय यज्ञ की तरह चारों दिशाओं में नाउ कहांर भेजे गए, और नवाज़ साहब भी तशरीफ़ लाये । उपहारों के आदान प्रदान की औपचारिकता भी पूरी हुयी । पर नवाज़ ऐसे मालिकार निकले जिनकी अपने घर में ही नहीं  चलती है । कभी कभी किसी के घर में मालिक बराए नाम होते हैं और चलती है किसी न किसी उद्दण्ड सदस्य की  तो मालिक बतकही चाहे जितना भी कर लें पर चलेगी सेना की ही । सेना को उस परिवार का उद्दण्ड सदस्य समझ लीजिये । सेना ने देखा बिना न्योते ही अचानक मिलना जुलना हो रहा है, शाल साड़ी, आम  कटहल सब बहँगी भर भर आ जा रहा है कहीं सब नॉर्मल न हो जाय तो उसने चेले चापड़ लगाए और डंडवारी कुदा दिया । बस लिहो लिहो मचना था मचा । फिर तो जो होना था वह तो हो ही रहा है ।
संघ प्रमुख मोहन भागवत  इस समय देश के सर्वाधिक ताक़तक़र व्यक्ति है । 2015 में उन्होंने एक बयान दिया था कि, पाकिस्तान हमारा छोटा भाई है । बात तो वे कभी कभी सही भी कहते  हैं । दोनों देश एक ही थे । लड़ भिड़ कर, बँट गए । बिलकुल दयादी और पट्टीदारी की तरह, का हाव भाव, बात चीत सब अगर आप गौर करें तो एक जैसे । कभी बिलकुल मुंह फुलौवल तो कभी औपचारिक मुस्कान से स्वागत । फिर अलग हटते ही " जैसे थे " ।

तो मित्रों, पाकिस्तान और हमारे रिश्ते कभी नीम नीम कभी शहद शहद जैसे रहे हैं । मुझे न पर्रिकर सर के बयान पर ऐतराज़ है और न ही राम्म्या के बयान पर । हाँ मुझे उन वकील साहब की अत्यंत कोमल भावना पर हैरानी  ज़रूर है जो राम्म्या द्वारा पाकिस्तान को नरक न मानने पर आहत हैं । हर व्यक्ति अपने अनुभव से ही किसी के बारे में धारणा बनाता है ।  पर्रिकर सर सरकार में हैं और वह वहाँ की सरकार के षडयंत्र को झेल रहे हैं तो वे नर्क ही कहेंगे और राम्म्या एक उत्सव में गयी थी और वे जिन लोगों से मिली वे उन्हें अच्छे लगे उन्होंने इसे नर्क मानने से इंकार कर दिया । समस्या यह नहीं है कि उन्होंने पाकिस्तान को नर्क मानने से इंकार क्यों किया समस्या यह है कि जो सरकार के मंत्री कह रहे हैं वह सब लोग क्यों नहीं कह रहे हैं । यानी जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे वाली चाटुकार शैली । सरकार तो जो जो जब जब कहती रही है वह तो अलग अलग मौके और अलग अलग रूप में कहती रहती है । हर बात में सरकार की हुंकारी ही भरी जाय यह न तो संभव है न ही उचित और न ही सरकार या उसके समर्थकों को यह अपेक्षा रखनी चाहिए । सरकार देश चलाती है पर वह , देश नहीं है । देश अपनी जगह बना रहेगा पर सरकारें आती जाती रहेंगी । इतिहास चक्र निर्बाध गति से चलता रहता है ।

आज जो हम तनातनी देख रहे हैं वह स्थायी नहीं रहने वाली है । 1948 के बाद लंबे समय तक शान्ति रही , फिर 1965 हुआ, फिर दोनों  थोडा सुस्ताये, फिर 1971 में तो वह टूट ही गया । फिर दोनों शिमला में बैठे । गिले शिकवे दूर हुए । फिर पाक ने जब देखा कि मैदान में भिड़ना और जीतना संभव नहीं है तो छद्म युद्ध शुरू हुआ । पाकिस्तान की नीयत तो 1948 से अब तक बिलकुल नहीं बदली । हमी खुद को दिलासा देते रहे कि, वहाँ की सरकार तो ठीक है पर सेना उसे दबाती है । देखिएगा, कल फिर दोनों के बीच बातें होंगी भले ही वह अमेरिका के दबाव में ही हो पर लंबे समय तक यह वार्तारोध चलने वाला नहीं ही ।

अगर राम्म्या पर सिर्फ यह कह देने पर कि वे नर्क की बात से सहमत नहीं है तो देशद्रोह का मुक़दमा जब कायम हो जाता है तो वे सारे लोग जो नर्क रूपी पाकिस्तान या पाकिस्तान रूपी नर्क की यात्रा करने गए थे क्या उन्हें छोड़ देना चाहिए ? नर्क या नर्क जैसी हरकत तो पाकिस्तान सत्तर साल से कर रहा है ।  सीधी सी बात है, पार्रिकर साहब का बयान भी गंभीर और कूटनीतिक नहीं था वह भी यूँ ही कह दिया गया था, और राम्म्या का भी बयान अपने अनुभव के अनुरूप ही था । पर इसे देश द्रोह से जोड़ कर देखा गया और मामला अदालत पहुँच गया । सोशल मिडिया भी राम्म्या के पीछे पड़ गया । सोशल मीडिया तो मनबहलाव का साधन हो ही रहा है और अब देशभक्ति भी दिल से कम जुबां से अधिक होने लगी है । हममें पाखण्ड की मात्रा बढ़ रही है और हम यह मान कर चल रहे हैं कि सिर्फ मेरा  ही सोचना उचित है शेष सब द्रोह है । यह संस्कृति का द्रोह काल है ।
( विजय शंकर सिंह )

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