Sunday 14 August 2016

एक त्रासद स्वतंत्रता - इतिहास का एक पृष्ठ / विजय शंकर सिंह

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स्वाधीनता संग्राम के दौरान अनेक नामों में एक नाम आता है सायरिल रेडक्लिफ का । रेडक्लिफ का पूरा नाम सायरिल जॉन रेडक्लिफ था । यह 30 मार्च 1899 को वेल्स में पैदा हुआ था और 1 अप्रैल 1977 को इसका निधन हुआ था । ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय का यह ग्रेजुएट पेशे से एक वकील था । आज़ादी के बाद नक़्शे पर भारत पाक का जो रूप हम देखते हैं वह इन्ही महोदय की देन है । भारत पाक के मायने बांग्लादेश भी जो तब पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था । क्या मज़ाक था, जिसने भारत में कुछ साल भी नहीं गुज़ारे और जिसे यह पता नहीं कि भारत है क्या, यहां की धर्म और संस्कृति का बहुलवादेव स्वरुप है क्या, वह हाँथ में नश्तर लिए हमें बांटने चला आया और बाँट कर चला भी गया ।

रेडक्लिफ बॉउंड्री कमीशन का चेयरमैन था । इसका दायित्व भारत पाक के हिन्दू मुस्लिम बहुल उन इलाक़ों की पहचान कर के प्रस्तावित भारत पाक की सीमा का निर्धारण करना था । बाउंडरी कमीशन , इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट के ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किये जाने के बाद, सीमा निर्धारण के लिये गठित हुआ था । यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण और जटिल था । समय भी इसके लिए कम था क्यों कि अपनी विजय को जो द्वीतीय विश्वयुद्ध में लार्ड माउंटबैटन को मिली थी को यादगार बनाने के लिए , उनके द्वारा भारत की आज़ादी की तारीख 15 अगस्त नियत कर दी गयी थी । एक दिन पहले देश को बाँट कर एक नए राष्ट्र का गठन जिसका नाम पाकिस्तान होगा कर दिया जाना था । रेडक्लिफ ने बॉउंड्री कमीशन के गठन के बाद चार माह में ही यह कम निबटा कर 9 अगस्त 1947 को प्रस्तावित नक़्शा वायसराय को सौंप दिया था । सारा काम पुराने जनगणना के आंकड़े और नक़्शे के आधार पर किया गया था । सदियों से जुड़े एक भाव के देश का यह अंगभंग था ।

बंटवारे के नक़्शे के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आबादी का विस्थापन हुआ । आंकड़े बताते हैं कि एक करोड़ चालीस लाख लोगों ने खुद को एकाएक गलत देश में पाया । जहां वे अनंत काल से बसे थे वहाँ से उन्हें उजड़ना पड़ा , कुछ दिनों के लिए नहीं , कुछ सालों के लिए भी नहीं बल्कि कभी वापस न आने के लिए भी । यह एक विकट त्रासदी थी । क्या सबकी कुंडली में विस्थापन योग था ? 10 लाख लोग उस बंटवारे के बाद हुयी धार्मिक हिंसा में मारे गए । अज़ीब पागलपन था । अपने बनाये गए नक़्शे के आधार पर देश में हुए इस मार्मिक हत्या के उन्माद से विक्षुब्ध हो कर रेडक्लिफ ने अपना मिलने वाला वेतन जो 3000 पाउंड यानी 40000 रूपये का था, को लेने से इन्कार कर दिया । शायद किसी को भी , न तो माउंटबैटन को , न ही गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना को ही बंटवारे के इस प्रकार के भीषण परिणाम की आशंका रही होगी । यह भी एक नियति के प्रति साक्षात्कार था। यह भी ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी थी।

रेडक्लिफ 8 जुलाई 1947 को भारत , नया नक़्शा बनाने के लिए आता है। तब तक बॉउंड्री कमीशन ने अपनी भूमिका बना ली थी । रेडक्लिफ को यह काम कुल 5 हफ़्तों में ही खत्म करना था । बॉउंड्री कमिशन की दो बैठकों की इन्होंने अध्यक्षता की। एक पश्चिमी पाकिस्तान या पंजाब के सम्बन्ध में दुसरी पूर्वी पाक यानी बंगाल  यानी आज के बांग्लादेश के सम्बन्ध में । उसे इन दो बड़े राज्यों में मुस्लिम और गैर मुस्लिम इलाके छांटने थे । जो उन्होंने पांच सप्ताह में ही पूरे कर लिए । लेकिन यह काम आसान नहीं था । दोनों तरफ के फैले अविश्वास ने तरह तरह की मांगे रखीं, जनगणना के आंकड़ें विश्वस्त नहीं थे, इलाक़ों की आर्थिक और सामाजिक रचना आड़े आ रही थी, और कहा जा रहा था, माउंटबैटन का अक्सर पड़ता हस्तक्षेप भी उनके काम को समय समय पर चुनौतीपूर्ण बनाता जा रहा था । फिर भी यह काम चाहे जैसा भी हो, पूरा हुआ और देश रेडक्लिफ के बनाये नक़्शे के अनुसार विभाजित हो गया । क्या रेडक्लिफ ने सीमा बनाने में पक्षपात किया था ? क्या उसे भारत के बारे में ज़मीनी जानकारी कम थी ? यह सवाल जीवन भर रेडक्लिफ से पूछे जाते रहे ।
भारत विभाजन पर उठते सवालों के बीच ही अंग्रेज़ी के कवि डब्ल्यू एच आडेन ने Partition नाम की एक रोचक कविता लिखी है । वह कविता यहां प्रस्तुत है . कविता का रचनाकाल 1966 है । यह कविता रेडक्लिफ को भेजी गयी तो उसने सिवाय एक विनम्र मुस्कान के कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ।

Partition / WH Arden. 1966.

Unbiased at least he was when he arrived on his mission,
Having never set eyes on this land he was called to partition.
Between two peoples fanatically at odds,
With their different diets and incompatible gods.
'Time,' they had briefed him in London, 'is short. It's too late.
For mutual reconciliation or rational debate:
The only solution now lies in separation.
The Viceroy thinks, as you will see from his letter,
That the less you are seen in his company the better,
So we've arranged to provide you with other accommodation.
We can give you four judges, two Moslem and two Hindu,
To consult with, but the final decision must rest with you.'
Shut up in a lonely mansion, with police night and day
Patrolling the gardens to keep assassins away,
He got down to work, to the task of settling the fate.Of millions.
The maps at his disposal were out of date
And the Census Returns almost certainly incorrect,
But there was no time to check them, no time to inspect.
Contested areas. The weather was frightfully hot,
And a bout of dysentery kept him constantly on the trot,
But in seven weeks it was done, the frontiers decided,
A continent for better or worse divided.
The next day he sailed for England, where he quickly forgot
The case, as a good lawyer must. Return he would not,
Afraid, as he told his Club, that he might get shot.

कविता एक व्यंग्य के रूप में है पर यह जो कह रही है वह यथार्थ है । जितनी कसरत देश की आज़ादी और बंटवारे के लिए 1936 से 1946 तक विभिन्न मिशनों और मीटिंग्स के द्वारा ब्रिटेन और आज़ादी के नायकों द्वारा की गयी उतनी कसरत अगर नक़्शे को धार्मिक आधार पर तय करने के लिए ही की गयी होती तो शायद इतना खून खराबा नहीं होता । बंटवारा तो 1946 तक तय हो ही गया था पर अंत तक यह तय नहीं हो पाया था, कौन इलाक़ा पाकिस्तान में रहेगा या कौन सा इलाक़ा भारत में जाएगा । पहले जिन्ना की मांग थी कि, पूरा पंजाब , बंगाल, नार्थ वेस्ट फ्रंटियर, आसाम और सिंध पाकिस्तान में जाएगा । बलोचिस्तान तो रियासत थी , अतः उसका निस्तारण बाद में होना था । फिर आसाम इस सूची से निकला। फिर तय हुआ धर्म के आधार पर जिलों के अनुसार विभाजन होगा । उस समय लाहौर, सिंध के कुछ जिले और पूर्वी पाक का चटगाँव हिन्दू बहुल थे पर वे मुस्लिम आबादी से घिरे थे । अंतिम समय तक इन हिन्दू बहुल इलाक़ों के निवासियों को यह गुमान था कि वे भारत में रहेंगे । लाहौर शहर में 80 % आबादी हिंदुओं की थी पर उसके देहात में मुस्लिम बाहुल्य था । सिंध के जिलों में कई जिले हिन्दू बाहुल्य थे । प्रसिद्ध साहित्यकार यशपाल के आत्म कथात्मक कृति सिंहावलोकन में लाहोर के एलीट क्लास के ड्राइंग रूमों में यह शर्त अंत तक लगाई जा रही थी कि, लाहौर तो भारत में रहेगा । पर अचानक जैसे एक घातक दुर्घटना हो जाय, वैसा ही घटा था, इस खूबसूरत शहर के लोगों पर, जिसके बारे में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध है कि जिसने लाहौर नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा ।

रेडक्लिफ तो अपनी भूलों का एहसास था। उन्होंने एक इंटरव्यू में खुद को कसाई कहा है । उसे जितनी जानकारी भारत के बारे में  , धार्मिक विवादों के बारे में और बंटवारे के बारे में लंदन में बतायी गयी थी, उसी के आधार पर उसने अपना काम किया । यह लेख लिखते समय मेरे मस्तिष्क में एक प्रश्न बराबर उठ रहा है और हो सकता है आप सब के मन में भी उठे कि, भारत में लंबे समय तक, आईसीएस अफसरों और ऐसे काबिल अँगरेज़ अफसरों के, जिनको देश की संस्कृति और धार्मिक विवादों तथा ज़मीनी मामलों की अच्छी समझ थी, को दरकिनार कर के सायरिल रेडक्लिफ को ही क्यों बॉउंड्री कमीशन के चेयरमैन के रूप में , जिसने इस दायित्व के पूर्व कभी भारत में कदम नहीं रखा हो, देश के दो भागों भारत और पाकिस्तान का नक़्शा खींचने का काम दिया गया । और इस दायित्व निर्धारण के लिए जो समय निर्धारित किया गया वह भी बहुत कम था । ऐसा क्यों ? बंटवारे और आज़ादी की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि देश के हिन्दू और मुस्लिमों ने जिस स्वाधीनता संग्राम में कंधे से कन्धा मिला कर, अपने साझे दुश्मन अंग्रेजों से लोहा लिया और आज़ादी प्राप्त की, उन्ही दोनों ने जब आज़ादी का जश्न दोनों मुल्कों में मनाया जा रहा  था तो, आपस में ही एक दूसरे की हत्याएं की, एक दूसरे के घर जलाये, और अचानक खुद को अपने पुरखों के ही घर में, एक दुःस्वप्न के समान , बेगाना पा कर, अनजान और अनिश्चित भविष्य की और चल पड़े । और वह साझा दुश्मन किनारे खड़ा मुस्कुरा रहा था । एक भी अँगरेज़ बंटवारे की हिंसा में नहीं मारा गया । यह भी एक प्रकार की ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी थी ।

( विजय शंकर सिंह )

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