Friday 15 July 2016

दादरी काण्ड - द्वितीयो अध्याय / विजय शंकर सिंह

दादरी का अख़लाक़ काण्ड आप भूले नहीं होंगे । किसी मांस की सूचना पर लोग इकट्ठे हुए और उन्होंने अख़लाक़ के घर तोड़ फोड़ की और उसकी हत्या कर दी । लोगों का कहना था कि वह मांस गाय का था । अख़लाक़ के परिवार का कहना था कि वह मांस बकरे का था । झूठी खबर किसी मंदिर के पुजारी ने फैलाई थी और लोगों ने  इसे साम्प्रदायिक रंग देते हुए यह हत्याकांड किया । मुक़दमा कायम हुआ । दोषी गिरफ्तार हुए और कुछ जेल में हैं तथा कुछ जमानत पर । मांस की जांच हुयी और तब एक खबर आयी बकरे का है फिर बाद में खबर आयी कि नहीं गाय का है। गाय का मांस रखना और खाना अपराध नहीं है पर गाय काटना एक दंडनीय अपराध है । जब हम नौकरी में थे तो अगर एक साथ किसी मनुष्य के हत्या की खबर और गौकशी की खबर साथ साथ आती थी तो , हम गौकशी पर ज्यादा चिंतित होते थे । क्यों कि उस खबर को उड़ा कर कोई भी , ज़िले या यूँ कहें कहीं भी आग लगा सकता था । मनुष्य की हत्या अगर सनसनी खेज नहीं है तो कोई दरोगा जी चले गए , पंचायतनामा भर दिया और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया । गिरफ्तारी होती रहेगी । पर गोकशी के मामले में आस पास के थानों को सतर्क किया जाता था, जहां कटी गाय पडी है उसे साफ़ कराया जाता था और जिन पर शक व शुबहा होता था, वे गिरफ्तार भी किये जाते थे । अगर आदतन अपराधी होते थे तो उन पर गैंगस्टर एक्ट लगता था नहीं तो एनएसए में तो निरुद्ध होते ही थे । एक प्रकार का यह सन्देश होता था, कि अगर गाय काट कर साम्प्रदायिकता को फैलाने की कोशिश की गयी तो रगड़ दिए जाओगे । पर हत्या पर अमूमन इतनी संवेदनशीलता नहीं उपजती थी । क्यों कि हत्याएं अधिकतर निजी कारणों से होती थी । उनकी चर्चा तो होती थी पर उस से कोई उन्माद नहीं फैलता था । इसी गोमांस के अख़लाक़ के फ्रिज में पाये जाने की अफवाह पर उन्मादित भीड़ ने हत्या कर दी और इसी मुक़दमे की सुनवाई अदालत में चल रही है ।

सुनवाई के दौरान ही मथुरा वेटरनरी कॉलेज के लैब की एक रिपोर्ट आती है जिसमे यह कहा गया कि यह मांस गाय का है । अब पहले जो सरकार या पुलिस का पक्ष आया था उसमे इसे बकरे का मांस बताया गया था । इसी रिपोर्ट को लेकर एक पक्ष यह मांग करता रहा कि अख़लाक़ के ऊपर गोकशी का मुक़दमा कायम किया जाय और उस के परिवार के लोगों के खिलाफ कार्यवाही हो । उसी क्रम में चीफ  जुडिशियल मैजिस्ट्रेट ने अख़लाक़ के परिवारी जनों में विरुद्ध अभियोग पंजीकृत करने का आदेश दे दिया और मुक़दमा कायम हो गया । सीजेएम का आदेश अपनी जगह बिलकुल दुरुस्त है । क़ानून भी यही कहता है कि अगर किसी संज्ञेय अपराध की सुचना पुलिस या अदालत को मिलती है तो उसकी एफआईआर पहले दर्ज़ होगी और उसकी तफ्तीश होगी । जिन्हें भी क़ानून की थोड़ी बहुत जानकारी होगी उन्हें यह बात पता है ।

अब इसके कानूनी पहलू को पुलिस के जांच अधिकारी पर छोड़ दीजिये क्यों की सुबूत जुटानें के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी । और वह करेगा भी । लेकिन अगर गौकशी साबित भी हो जाय और अख़लाक़ के परिवार को इस ज़ुर्म में सजा भी हो जाय तो भी अख़लाक़ के परिवार के साथ जो हत्याकांड हुआ है उसे कानूनन जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है । अब दो मुक़दमे चलेंगे । अख़लाक़ के परिवार पर गोहत्या का और उसे मारने वालों पर हत्या और आगज़नी का । आक्रोश भले ही साबित हो जाय पर किसी भी हत्या के लिए आक्रोश कोई बहाना नहीं बन सकता है । अब दोनों मुक़दमे अदालत में है और देखना है क्या होता है । सोशल मिडिया पर अख़लाक़ की तरफ से कुछ पोस्ट डाल कर यह बताया जा रहा है कि मुक़दमा कायमी का आदेश गलत है । मुक़दमा तो कायम होगा ही और उसकी तफ्तीश भी होगी । कुछ लोग हर घटना में हिन्दू मुस्लिम एंगल ढूंढने लगते हैं । यह बात कानून और न्याय के असल मुद्दे को दूर कर देती है । असल मुद्दा जो अदालत के समक्ष हैं वह अपराध है । पुलिस को अभियुक्त का अपराध ही साबित करना होगा और सजा भी इसी आधार पर दी जायेगी । हर बात में हिन्दू मुस्लिम एंगल खोजना एक प्रकार का विश्वास का संकट है । और यह विश्वास का संकट देश के सामाजिक ताने बाने के लिए घातक है ।

© विजय शंकर सिंह

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