Thursday 14 July 2016

एक लघु कविता .... याद / विजय शंकर सिंह

फिर वही झूठ , और फरेब पर टिकी दास्ताँ तेरी ,
फिर वही बातें बड़ी बड़ी , और
हवा में उड़ती लनतरानियां ,
फिर वही ख्वाब जिनके रैपर बदले हैं बस,
फिर वही तिलस्म , धोखे भी वही,
आह कितने मुखौटे हैं तुम्हारे पास !

कभी गिनना उन्हें ।
बताना मुझे फिर,
इन मुखौटों  और लिबासों के बीच
वह , हसीन और निष्पाप चेहरा लेकर ,
जिसे, तुम
इस दुनिया ए फानी में आये थे, कभी,
अब तुम्हे याद भी है या नहीं !!

© विजय शंकर सिंह

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