Monday 2 May 2016

प्रधान मंत्री जी की डिग्री का खुलासा - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

आई आर एस एसोशिएसन ने कहा है कि अरविन्द केजरीवाल कभी भी आय कर आयुक्त नहीं रहे हैं । आई आर एस , भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन है। सरकार अरविन्द केजरीवाल के बारे में पूरी जानकारी जारी कर सकती है। उसे ऐसा कर देना भी चाहिए । अगर नौकरी के दौरान कोई विवाद और जांच आदि भी हुयी हो या उनकी कोई उपलब्धि रही हो तो उसे भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए । फिर कोई विवाद ही नहीं रह जाएगा।

प्रधान मंत्री जी एम ए है। वह भी प्रथम श्रेणी में। एक साधारण परिवार में जन्मे और जिनकी माता जी ने अड़ोस पड़ोस के लोगों के बर्तन मांज कर इन्हें पाला पोसा, फिर ये संघ से जुड़े, कार्यालय में दरी बिछाने से ले कर प्रचारक तक की सीढी चढ़े , और उसी बीच हिमालय की गोद में संन्यास की भी दीक्षा ली, और तब अगर वह 63 ℅ अंक के साथ राजनीति विज्ञानं में एम ए पास करते हैं तो यह एक साधारण बात नहीं है ।

लेकिन यह भी साधारण बात नहीं है कि इस गौरवपूर्ण तथ्य को, गुजरात विश्वविद्यालय ने छुपाये क्यों रखा ?
मुख्य सूचना आयुक्त को यह सूचना जारी करने में इतनी कश म कश का सामना क्यों करना पड़ा ?
सोशल मिडिया पर जो मज़ाक बना वह इसी ढुलमुलपने के कारण ही बना । सरकारी लोगों की एक ख़ास आदत होती है, वे सूचनाएं छुपाते हैं। ऐसी सूचनाएं भी छुपाते हैं जो अखबारों तक पहुँच गयी हैं। मैं भी छुपाता था। मैं जब डी जी पी  का पी आर ओ था तो पत्रकार मित्रों को इधर उधर की कहानियां सुना कर उन सूचनाओ को छुपाने की कोशिश करता था, जो पुलिस ज्यादती के बारे में होती थीं, पर वे अखबारों के पास अन्य श्रोत से पहुँच ही जाती थी। मेरा काम ही था, पुलिस की बेहतर क्षवि को प्रोजेक्ट करना। पर इस खबर से कि मोदी , एम ए पास हैं, और प्रथम श्रेणी में , प्रधान मंत्री जी की क्षवि ही इस सूचना के खुलासे से विवादहीन हो रही थी। फिर ऐसा क्यों नहीं किया गया । क्या इस अनावश्यक विवाद के लिए, गुजरात विश्वविद्यालय प्रशासन जिम्मेदार नहीं है ?

मनुष्य की जिज्ञासा का अंत नहीं है । और खुराफात का भी अंत नहीं है । इसी को लक्ष्य कर के सच बोलने की सलाह दी गयी है । और साथ ही, उचित समय पर भी बोलने की सलाह दी गयी है । डिग्री का मामला सुलझा तो जन्म तिथि का मामला उलझ गया । काफी पहले जब जन्म मृत्यु पंजीकरण महकमा बहुत सक्रिय नहीं था, बच्चे घरों में ही पैदा हो जाते थे, तिथि और समय के प्रति बहुत जागरूकता नहीं थी तो बच्चे की जन्म तिथि गाँव के प्रायमरी स्कूल के मास्टर जी जब बच्चे का दाखिला गदहिया गोल में होता था तो तय करते थे । गदहिया गोल अक्सर मज़ाक में प्रायमरी स्कूलों की नर्सरी या के जी को कहा जाता था । जब मैडम मॉन्टेसरी की शिक्षा प्रणाली आयी तो यह केजी , नर्सरी वाला सिस्टम आया। और जब स्कूल और कॉलेज कमाने धमाने के साधन बन गए तो लोअर केजी और अपर केजी भी बन गए । इस लिए पहले की जन्म तिथियां अक्सर जुलाई की ही होती थीं। इस खुलासे के बाद, अब मोदी जी की जन्म तिथि में अंतर आ गया है। सौभाग्य से माता जी अभी जीवित हैं और वही इस संदेह का समाधान कर सकती हैं । वैसे जन्म तिथि की वैधता को ले कर कम पहले भी कम बवाल और अदालती लड़ाइयाँ नहीं हुयी है । नवीनतम लड़ाई तो एक जनरल साहब ने ही लड़ी। पर सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दे दी है कि आप चाहे जब भी इस धरा पर आये हों पर आप की जन्म तिथि जो हाइ स्कूल के सर्टिफिकेट में दर्ज़ है, वही मान्य होगी । बाक़ी सब खारिज !

प्रधान मंत्री होने के लिए शिक्षित होना ज़रूरी नहीं है। प्रशासन में अधिक पढ़े लिखे लोग सफल नहीं होते हैं। अकबर तो अनपढ़ था । पर उसने एक मज़बूत साम्राज्य की नींव डाली। औरंगज़ेब तो बहुत पढ़ा लिखा था पर उसने तो बरबादी की राह ही अपने साम्राज्य के लिए खोल दी । नेहरू बार ऐट लॉ थे। शास्त्री जी बी ए , एल एल बी थे । इंदिरा गांधी ग्रेजुएट भी नहीं थी । राजीव भी पायलट थे पर ग्रेजुएट नहीं थे । वीपी सिंह बीए भी थे और बीएससी भी । चंद्रशेखर जी एम ए थे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से । देवेगौड़ा तकनीकी शिक्षा प्राप्त थे, इंद्र कुमार गुजराल एम ए थे और पढ़ने लिखने की आदत भी थी । नरसिम्हा राव तो विद्वान थे, और एम ए थे तथा 14 भाषाओं के जानकार भी थे । अटल जी भी एम ए थे, और मनमोहन सिंह तो अकादमिक व्यक्ति थे ही । सबसे अधिक पढ़े लिखे वही थे । मोदी जी के ही शिक्षा पर बवाल मचा था, अब वह भी एम ए निकल गए । अच्छा ही हुआ ।

आखिर इन्हीं की शैक्षणिक योग्यता पर इतना संशय क्यों उठा ? और इस संशय पर पीएमओ मौन क्यों रहा तथा गुजरात विश्वविद्यालय और सी आई सी ने सूचना दबाई क्यों ? क्यों संदेह का ऐसा वातावरण बना कि सोशल मिडिया पर उनके सहपाठी को खोज लाने के लिए इनाम का इश्तहार निकालना पड़ा । इस मज़ाकिया और एम्बरेस करने वाली स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ? सूचना क्रान्ति के इस युग में जहां वैसे ही खलिहर लोग प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, कोई भी जानकारी छुपाना लगभग असंभव है। वैसे भी प्रधान मंत्री जी के एम ए होने या न होने से , उनके उपलब्धि या कमियों पर कोई भी अंतर नहीं पड़ेगा । जनता जब भी वोटिंग मशीन दबाने जायेगी, वह प्रधान मंत्री का भाषण, रूप, विदेशो के शो, आदि सब भूल कर उस समय जो तात्कालिक भाव होगा उसी से प्रभावित हो कर वह अपना फैसला सूना देगी । आवाज़ ए ख़ल्क़ सच में नक़्क़ारा ए खुदा ही होती है !

देखते हैं गुजरात विश्वविद्यालय का डिग्री खुलासा , सारी शंकाओं का समाधान कर पाता है या नहीं। या वह नए प्रश्न खड़ा कर देता है । भारतीय मन और मेधा की प्रकृति और स्थायी भाव जिज्ञासा ही रही है। यही इसकी शक्ति है और इसी से यह निरंतर प्रवाहमान रही है ।

( विजय शंकर सिंह )

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