Saturday 16 April 2016

हिटलर की मूंछे और चार्ली चैपलिन - एक दिलचस्प चर्चा / विजय शंकर सिंह



हिटलर बीसवीं सदी का सबसे चर्चित तानाशाह था और चार्ली चैपलिन सबसे बड़े अभिनेता । हिटलर भी जर्मनी का था और चैपलिन भी जर्मनी के ही मूल निवासी थे । हिटलर स्वयं को शुद्ध आर्य रक्त का मानता था और चैपलिन यहूदी थे । हिटलर , यहूदियों का कट्टर शत्रु था जिसके आतंक और भय के कारण , यहूदियों का बहुत बड़ी संख्या में पलायन हुआ, और भारी संख्या में यहूदी लोग अमेरिका में जा बसे । हिटलर और चैपलिन में एक समता भी खोजी जा सकती है  और वह अजीब समता है मूंछों की । हिटलर ने चैपलिन के मूंछों की नक़ल की या चैपलिन ने हिटलर की इस पर भी अच्छा ख़ासा मंथन हो चुका है । आज इसी महान अभिनेता चार्ली चैपलिन का जन्म दिन भी है ।

अब थोड़ी चर्चा मूंछे पर । मूंछे मर्दानगी की निशानी मानी जाती हैं । मूंछे रखने का रिवाज़ बहुत ही रहा है । कहा जाता है कि पिता के जीवित रहते मूंछे कटाना उचित नहीं माना जाता था । पर अब मूंछे भी अपना वर्चस्व खोने लगी। लोग दाढी मूंछ सफाचट यानी क्लीन शेव्ड होने लगे । यह मैं भारतीय परम्परा की बात कर रहा हूँ । यूरोपीय परम्परा का नहीं ।

हिटलर ने जो मूंछे रखी थीं , वे जर्मनी में बीसवीं सदी के प्रारंभिक दौर में, प्रचलित टूथब्रश शैली की मूंछों का छोटा रूप था । टूथब्रश शैली की मूंछों के पहले जर्मनी में जो मूंछों का फैशन था, वह कैसर मूंछे कहलाती थी । कैसर मूंछे जर्मन सम्राट कैसर विलहेल्म  द्वारा रखी गयी मूंछों से आया था । ये मूंछे ऊपरी होंठों के दोनों और बढ़ कर नुकीली पर सीधी हो जाती थी । ऐसी मूंछों को कैसरब्रट मूंछे कहा जाता था । टूथब्रश शैली की मूंछे होंठ के बाहर नहीं जाती थीं पर वे आयताकार होती थीं ।

कैसर ब्रट मूंछों के साथ एक दिक्कत और थी कि इसका रख रखाव आसान नहीं था । कैसर तो सम्राट था, वह अपनी मूंछों की कटाई छंटाई करा सकता था, पर अन्य सामान्य लोग ऐसा नहीं कर पाते थे । रख रखाव में कठिनाई के कारण ही लोग दाढी रखने लगे । धीरे धीरे कैसर मार्का मूंछों का नुकीलापन समाप्त हो गया और मूंछे होंठ के ऊपर आयताकार रूप में रखी जाने लगीं, यही शैली, टूथ ब्रश मूंछे कहलाई । हिटलर शुरू में ऐसी ही मूंछे रखता था ।

इन मूंछों के रख रखाव में न तो अधिक समय लगता था, और न ही अधिक जतन करना पड़ता था । एक दिलचस्प लेख 1907 के न्यूयॉर्क टाइम्स में इन मूंछों के बारे में छपा था, जिसमे कहा गया है कि मूंछों की यह शैली जर्मनी की मौलिकता नहीं बल्कि अमेरिका से यूरोप गयी हुयी है । इस अमेरिकी मूंछ शैली निर्यात के दावे में कहाँ तक सचाई है यह मैं नहीं बता पाउँगा।
हिटलर यूरोपीय इतिहास में एक अभिशप्त नाम है । उसने टूथ ब्रश शैली की आयताकार मूंछों को और भी छोटा कर दिया । उसकी मूंछे ऊपरी होंठ पर नासिका छिद्रों के विस्तार तक ही जाती थीं। लेकिन हिटलर की मूंछों की इस शैली का जर्मन नाम रोट्ज़बरेंसे जिसे अंग्रेज़ी में snot brake कहते हैं कहा जाता था । यह मूंछे देखने में मज़ाकिया लगती थीं और अक्सर इसका लुक विदूषकाना था अतः मूंछों की यह शैली तत्कालीन जर्मनी में बहुत लोकप्रिय नहीं हुयी । कहते हैं हिटलर ने इन मूंछों की अलोकप्रियता के कारण ही ऐसी शैली अपनाई । हिटलर के करीबी दोस्त , एरन्स्ट हफस्तनगल ने जब हिटलर से कहा कि ऐसी मूंछों को जर्मनी में कोई पसंद नहीं करता है तो, हिटलर ने कहा, उसने जान बूझ कर ऐसी मूंछे रखी है ताकि यह फैशन बने और इन मूंछों को हिटलर कट मूंछे कहा जाय । भविष्य में ऐसा हुआ भी ।

एक जर्मन इतिहासकार हैं रॉन रोसेंबउन । इन्होंने हिटलर के चरित्र , आदतों और व्यक्तिगत रूचि, अरुचि पर एक शोधपरक लेख लिखा है । उन्होंने लिखा है कि,
" नासिका छिद्रों के नीचे तक होंठ पर छोटी और मज़ाकिया शैली की मूंछे रखने का चलन हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन ने चलाया है । चार्ली ने पहले मूंछों की जगह मूंछों का मेक अप नाक के ठीक नीचे हास्य बोध उत्पन्न करने के लिए मैक सेनेट की मूक हास्य फिल्मों में 1915 में किया था । बाद में यही मेक अप चार्ली चैपलिन की पहचान बन गयी। चैपलिन ने जब नियमित मूंछे रखनी शुरू कर दी तो चार्ली चैपलिन कट मूंछों की एक नयी शैली बन गयी । हिटलर ने अपने मूंछों की शैली , चार्ली के ही चेहरे से ली है । "

बात जब मूंछों की है तो आसानी से कौन हार मानता है । रॉन के शोध के बाद अलेक्जेंडर मोरिट्ज़ फ्रे ने एक नया शोध पत्र प्रस्तुत किया । मोरिट्ज़ , हिटलर के साथ प्रथम विश्व युद्ध में भाग ले चुका था और कई लड़ाइयों में दोनों साथ साथ थे । फ्रे के अनुसार, 
" हिटलर , खाइयों में मास्क लगा कर रहता था । सारे सैनिकों के लिए मास्क लगाना ज़रूरी था। हिटलर जो पहले से ही टूथब्रश शैली की मूंछे रखता था, अक्सर मूंछों के घनेपन के कारण मास्क नहीं पहन पाता था । तब उसने मास्क सुविधानुसार पहनने के लिए ही , अपनी मूंछे अगल बगल से काट दी और वह एक नयी शैली बन गयी । चार्ली ने उसी मज़ाकिया शैली को अपना लिया । लेकिन चार्ली एक लोकप्रिय कलाकार थे, इस लिए उनके नाम के साथ यह शैली चल निकली।"
फ्रे आगे लिखता है , 
" हिटलर युद्ध की पैदाइश था। वह बेहद घमंडी और अहंकारी था। द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी की जो शर्मनाक पराजय हुयी उस से वह बेहद आक्रोशित था। युद्ध के दौरान जब जर्मनी हारने लगा था तभी हिटलर में अंग्रेज़ों के विरुद्ध प्रतिशोध की अग्नि उमड़ पडी थी।  वह किसी की नक़ल कर ही नहीं सकता था। अतः यह कहना कि चार्ली चैपलिन के मूंछों की उसने नक़ल की है , सच नहीं है।  चार्ली का मेक अप बस एक फिल्म स्क्रिप्ट की मांग हो सकती है। "
हिटलर की बहन , जो  इंग्लैण्ड में रहती थी ने भी फ्रे के विचारों और तथ्यों का अनुमोदन ही किया है। हिटलर की बहन , ब्रिजेट हिटलर  अनुसार , 
" जब हिटलर ने अपनी मूंछे छोटी रखनी शुरू की, और वह चार्ली चैपलिन की तरह लगीं तो उस से जब पूछा गया कि क्या यह चैपलिन  नक़ल है ? तो उसने यहूदियों को गाली देते हुए कहा , कि वह नहीं जानता कि चैप्लिन कैसा है और कैसी मूंछे रखता है। "



हिटलर के चरित्र को देखते हुए यह स्वीकार करना आसान नहीं है कि मूंछों के मामले में हिटलर ने चार्ली की नकल की होगी। हिटलर अपने सामने ब्रिटेन के सम्राट को भी कुछ नहीं समझता था।  आर्य रक्त की शुद्धता का अभिमान उसमें दर्प की सीमा से भी अधिक था। चार्ली चैपलिन की नकल उसे हास्यास्पद ही बनाती। चार्ली अपनी बेमिसाल अभिनय प्रतिभा के बावजूद , एक हास्य कलाकार ही थे। उनकी विपन्नता के किस्से , कभी कभी उनकी लोकप्रियता पर भारी पड़  जाते थे। 

चार्ली चैपलिन ली अनेक  लोकप्रिय फिल्मों में एक  फिल्म है ' द डिक्टेटर। ' यह फिल्म हिटलर के ऊपर ही आधारित है। चार्ली ने इस फिल्म में हिटलर का बेमिसाल अभिनय किया है। यह हिटलर की मिमिक्री है। उनकी बड़ी इच्छा थी की , इस फिल्म का प्रदर्शन , हिटलर के सामने हो और वह खुद ऐसे प्रदर्शन के समय हिटलर के साथ थिएटर में मौजूद रहें। चार्ली की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। ग्रेट डिक्टेटर , वास्तव में हिटलर पर बेहद साधा हुआ और मार्मिक व्यंग्य है। हिटलर को जब ज्ञात हुआ कि उस पर ऐसी मज़ाक़ उड़ाने वाली फिल्म बनायी जा रही है तो उसने कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की , पर उसकी उत्कंठा अपने मज़ाकिया किरदार को देखने की थी। इस फिल्म की योजना चार्ली ने 1936 में नाज़ियों के प्रचार युद्ध का कला के माध्यम से जवाब देने के लिए बनायी। चैपलिन ने न केवल हिटलर जैसी मूंछे रखी बल्कि हिटलर के चलने और बात करने और केश विन्यास की भी नक़ल की। इस फिल्म की  स्क्रिप्ट , और लोकेशन दोनों में , वास्तविकता लाने के लिए कई बार बदलाव किया  गया । चार्ली ने हिटलर के भाषण देने के अंदाज़ , और उसके गर्दन तथा हाँथ झटकने की आदत की हूँ ब हूँ नकल करने के लिए , हिटलर से जुडी कई फिल्मों को बेहद संजीदगी के साथ देखा। 

चार्ली इस फिल्म का  अंत एक नृत्य के द्वारा करना चाहते थे। पर अंत में उन्होंने फिल्म का  क्लाइमेक्स बदल दिया। उन्होंने हिटलर के ही अंदाज़ में अपना अत्यन्त लोकप्रिय भाषण दिया जिसमें उन्होंने हिटलर के तानाशाही की धज्जियां उड़ा दीं। 100 मूक फिल्मों में अभिनय के बाद जब चार्ली मुखर हुए तो उनका हंसोंडपन खो गया और एक संजीदा अभिनेता सामने आया। फिल्म 1940 में रिलीज़ हुयी थी। उस समय युद्ध ज़ोरों पर था। यूरोप और एशिया में अफरा तफरी मची थी। अमेरिका तब तक युद्ध में शामिल नहीं हुआ था। लन्दन और पेरिस पर बमबारी हो रही थी। अमेरिका अपना उत्पादन बढ़ा कर , मुनाफ़ा कमा रहा था। यह फिल्म कलात्मक और चार्ली के अभिनय प्रतिभा का अप्रतिम उदाहरण होने के बाद भी अखबारों का उचित ध्यान नहीं खींच पायी। कारण सारे अखबार युद्धों की ख़बरों और नेताओं के बयानों से भरे रहते थे।

लेकिन , हिटलर ने फिल्म देखी। तत्कालीन इतिहासकारों के अनुसार हिटलर ने यह फिल्म दो बार देखी। पर अकेले। चार्ली के साथ नहीं। बताते हैं कि जब उसे इस फिल्म , और उसकी मज़ाकिया भूमिका के बारे में भी बताया गया तो उसने इस फिल्म की प्रिंट मंगाई। अपने कार्यालय में एक विशेष प्रोजेक्टर पर यह फिल्म उसने देखी। उसे हैरानी हुयी कि कैसे कोई कलाकार , उसकी नक़ल करने के लिए , ढूंढ ढूंढ कर उसकी फिल्में देख सकता है। यह भी कहा जाता है कि चार्ली को अपशब्द कहने वाला , यह कठोर और उन्मादी तानाशाह , फिल्म में जब चार्ली का  भाषण जो , चार्ली ने हिटलर का अभिनय करते हुए दिया था , समाप्त हुआ तो , हिटलर फूट फूट कर रो पड़ा।  अभिनय जब मर्म को छू जाय , तभी उसकी सार्थकता है , अन्यथा वह नाटक है।



चार्ली चैपलिन एक विलक्षण और विचक्षण अभिनेता थे।

( विजय शंकर सिंह )  




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