Sunday 19 April 2015

Ghalib - Az meh're taa zarraa / अज मेहरे ता ज़र्रा - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह



अज मेहरे ता ज़र्रा दिलोदिल है आईना,
तूती को शश जिहत से मुकाबिल है आईना !!  -
ग़ालिब. 

Az meh're taa zarraa dilodil hai aaiinaa,
Tootee ko shash jihat se muqaabil hai aaiinaa !! 
- Ghalib. 

मेहरे - सूर्य. 
ज़र्रा - धूल का कण. 
तूती - मैना या सारिका पक्षी.
शश - छ संख्या 6
जिहत - दिशाए. 

ईश्वर सर्वव्यापी है. और संसार की हर वस्तु में उसकी छाया विद्यमान है. उसके अस्तित्व के बिना किसी का अस्तित्व ही नहीं हो सकता. इस शेर में जिस दर्पण या आईना का ज़िक्र है वह संसार ही है. सूर्य से लेकर धूलि के कण तक ह्रदय ही ह्रदय है. यह ह्रदय दर्पण स्वरुप है. सभी दिशाओं से आत्मा के समक्ष यह दर्पण विद्यमान है. 

यह शेर ग़ालिब की दार्शनिकता की और इशारा करता है. संसार की प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का ही प्रतिविम्ब है. यह प्रतिविम्ब हमें उसी का स्मरण कराता है. इसी से मिलता जुलता कबीर का भी एक कथन है, 

ज्यूँ जल में प्रतिविम्ब,
त्यूं सकल रामहि जाणिजे ! 

जैसे जल में हर प्रतिविम्ब राम , ईश्वर के ही अस्तित्व का भान कराता है. यहाँ कबीर में भक्तिभाव भी है. पर ग़ालिब में केवल दर्शन है. दर्शन को अपने प्रतीकों के माध्याम से व्यक्त करने में ग़ालिब को महारत हासिल थी.

( विजय शंकर सिंह )

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