Monday 30 March 2015

Ghalib - Ajab nishaat se, jallaad ke / अजब निशात से, जल्लाद के - ग़ालिब. / विजय शंकर सिंह



अजब निशात से, जल्लाद के, चले हैं हम, आगे
कि अपने साए से सर, पाँव से है दो कदम आगे !! 
-
ग़ालिब. 

Ajab nishaat se, jallaad ke, chale hain ham, aage
Ki apne saaye se sar,paaon se hai do kadam aage !!
-Ghalib. 

निशात - आनंद,

ग़ालिब के इस शेर की पृष्ठभूमि है 1857 का विप्लव. ग़ालिब इस विप्लव के प्रत्यक्ष दर्शी भी थे. उन्होंने अपने पत्रों में इसका बेहद रोचक वर्णन किया है. देश की खातिर हंस हंस कर अपने प्राणों की आहुति देने के क्रांतिकारियों के उत्साह का चित्रण इस शेर में भी दिखता है, जिस में तेज़ी से उत्साह से कदम बढाते हुए खुशी खुशी बलिदान देने की बात कही गयी है. इस बलिदान को हमारे देशभक्ति के जज्बे और मातृभूमि के प्रति बलिदान देने की बात कही गयी है. हमारे कदम इतनी तेज़ी से बढ़ रहे हैं कि हमारा सिर हमारे परछाई से भी दो कदम आगे है. 

एक अन्य व्याख्या में इसे प्रेम से जोड़ कर भी देखा गया है. ज़ल्लाद यहाँ प्रेमिका का प्रतीक है, तेज़ कदमों से हम उस की और अग्रसर है, और जो परनाम जल्लाद के पास पहुँच कर होता है, वही परिणाम यहाँ भी होगा. लेकिन इस शेर का समय 1857 के आस पास है, इस लिए इसका एक अर्थ देशप्रेम और उन क्रांतिकारियों से भी जोड़ कर देखा गया, जो 1857 के महान विप्लव के सिपाही थे. 

(
चित्र 1857 के दिल्ली में हो रहे संघर्ष का है

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