Tuesday 24 February 2015

RSS and Mother Teresa / मदर टेरेसा पर आर एस एस प्रमुख का बयान और धर्म परिवर्तन / विजय शंकर सिंह


मदर टेरेसा पर आर एस एस प्रमुख का एक बयान आया है। उन्होंने कहा है कि मदर की सेवा के पीछे धर्मांतरण एक प्रमुख कारक रहा है। मदर एक कैथोलिक ईसाई थीं और वैटिकन ने उन्हें संत की उपाधि से भी नवाज़ा है। भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न माना है और उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान माने जाने वाला नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है। धर्म परिवर्तन सनातन धर्म को छोड़ कर अन्य सभी धर्मों में रहा है। विशेषकर ईसाई और इस्लाम ने व्यापक धर्म परिवर्तन कराये हैं और यह सिलसिला दुनिया भर में चल रहा है। ईसाई चर्च इसे धर्म प्रचार मानते हैं और इसे वे एक मिशन के रूप में दुनिया भर में चलाते हैं। भारत में धर्म परिवर्तन उन जगहों पर बहुत हुआ जहां सनातन धर्म की जड़ें कमज़ोर थीं जैसे आदिवासी इलाक़ों में जहां कोई धर्म नहीं  था जो धर्म था वह आटविक धर्म था। आटविक यानी जंगली धर्म। महाभारत में भी ऐसे आटविक राज्यों का उल्लेख मिलता है। इसी लिए पूर्वोत्तर राज्यों में और मध्य भारत के आदिवासी बहुल इलाके ईसाई हो गए। सनातन धर्म जहां था वहाँ भी कुछ दलित जातियां ईसाई हुईं। पर इन धर्म परिवर्तन का कारण ईसा मसीह की शिक्षाओ का प्रभाव कम बल्कि समाज में सम्मान प्राप्त करना अधिक रहा है।

श्री मोहन भागवत का कथन जो मदर टेरेसा के बारे में है उस से सहमत होना थोड़ा कठिन है। जिन्होंने मदर के सेवा केंद्र देखें हैं वे इस तथ्य से भली भांति परिचित होंगे कि वहाँ चिकत्सा या संरक्षण के लिए जाने वाला हर व्यक्ति तो ईसाई होता है ही उसे ईसाई बनाया जाता है। मुझे खुद उनके कोलकाता और अन्य आश्रमों में जाने का अवसर मिला है और मदर से भी मिलने का अवसर मिला है पर मुझे धर्म परिवर्तन ही मुख्य उद्देश्य हो यह नहीं दिखा। वहाँ छोटे छोटे अबोध शिशुओं को गोद में भी दिया जाता है। जो परिवार इन्हे गोद लेते वे अपने धर्म के अनुसार शशु का पालन पोषण करते हैं। ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि , गोद लिए गए शिशु को ईसाई ही बना कर दिया जाय। इसी प्रकार वहाँ जिनका  होता है उन सबका बिना धार्मिक भेदभाव के ही इलाज़ होता है। कैथोलिक मिशनरी होने के नाथ बाइबिल और ईसा से जुडी प्रार्थनाएं ज़रूर होती हैं। वैसे ही जैसे सभी ईसाई मिशनरी स्कूलों में बाइबिल और ईसा से जुडी प्रार्थनाएं होतीं हैं और इनकी शिक्षा भी दे जाती है। पर जैसे ये स्कूल सब को ईसाई नहीं बना देते वैसे ही मदर के  सेवा केंद्र भी सबको ईसाई  नहीं बनाते हैं।

अक्सर हिन्दुत्ववादी संगठन धर्म परिवर्तन का आरोप ईसाई और इस्लाम पर लगाते हैं। धर्म परिवर्तन होता भी है.. कहीं दबे छुपे तो कहीं खुल कर।  अब भय कोई कारक नहीं रहा , पर लोभ निश्चित रूप से एक बड़ा कारण पहले भी था और आज भी है। आखिर हिन्दू धर्म से लोग दूसरे धर्मों में अब जा रहे हैं ? यह एक बड़ा सवाल है जिसका उत्तर ढूंढना होगा। अब मुस्लिम राज है , ब्रिटिश।

धर्मांतरण के इतिहास पर मोटे तौर पर दृष्टि डालें तो सबसे पहला धर्म त्याग या परिवर्तन जैन और बौद्ध धर्म हुआ है। पर यह परिवर्तन महावीर और बुद्ध की सरल और कर्मकांड विहीन उपासना पद्धति के कारण हुआ। जिन मुनि का धर्म चूँकि बुद्ध की तुलना में अधिक कष्टकर मार्ग को बताता है ,इसलिए लोगों ने बुद्ध का पथ चुना। बुद्ध धर्म को अशोक ने ग्रहण किया और फिर वह धीरे धीरे सामंतों का प्रिय धर्म हो गया। बाद में जनता ने भी उसे अपनाया। संसार में कोई भी विचार अपनी त्वरा के साथ सदैव नहीं रहता है। बुद्ध के विचारों के साथ भी यही हुआ। अतिशय अपरिग्रह और भिक्षावृत्ति ने पूरी की पूरी एक पीढ़ी को अकर्मण्य बना दिया था। यह दूसरी अति थी। पहली अति थी वैदिक काल की अतिशय जटिल उपासना पद्धति और अर्मकांड। हर अति की प्रतिक्रिया होती है। बौद्ध धर्म के इस अति की भी हुई।  पुष्यमित्र शुंग ने कमज़ोर बौद्ध राजा मगध नरेश बृहद्रथ का वध कर दिया और उसे गद्दी से अपदस्थ कर दिया। बौद्ध धर्म का पराभव काल यहाँ से प्रारम्भ हुआ। यह घटना  185  BC  की है। जो धर्मांतरण सनातन धर्म से बौद्ध धर्म में हो चुका था वह प्रत्यार्तित होने लगा। लोग फिर अपने मूल धर्म में वापस आने लगे।

धर्मांतरण का दूसरा चरण मुहम्मद बिन क़ासिम के 726 ईस्वी में सिंध के राजा दाहिर को हराने के बाद शुरू हुआ। लेकिन इस्लाम से भारत अपरिचित नहीं था। अरब सौदागरों के रूप में दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट पर इनका आगमन हो चुका था। वहा पहली मस्जिद बन चुकी थी मालाबार के राजा ने भी इस्लाम ग्रहण कर लिया था। पर उत्तर भारत में चूँकि इस्लाम राज्य विस्तार की इच्छा से आया तो तो यहां कटुता बनी रही। इसके विपरीत दक्षिण यह व्यापार के माध्यम से आया तो वहाँ के सामाजिक ताने बाने पर बहुत असर नहीं पड़ा। यह क्रम लम्बे समय तक मुगलों के अवसान तक चला। बीच बीच में धर्मांतरण भी होता रहा और सनातन धर्म भी अपनी गति से चलता रहा।

सबसे व्यापक  धर्मपरिवर्तन औरंगज़ेब के कार्यकाल में हुआ। उसका शासनकाल लंबा था। उसने 1656 से 1705 तक राज हुआ। इसका प्रतिफल भी उसे भोगना पड़ा।  मराठों का , राजपूतों का , सिखों का और जाटों का बहुत संगठित विरोध उसे झेलना पड़ा। उसकी धार्मिक नीति ने उस समय के विश्व के सर्वाधिक संपन्न और विशाल राजवंश के पतन का मार्ग प्रशस्त कर दिया।  उस समय जो धर्म परिवरण हुआ वह मूलतः बड़ी जातियों में विशेषकर क्षत्रियों में हुआ। अनेक बड़े ज़मींदार , और राजाओं ने इस्लाम ग्रहण कर लिया। धर्म परिवर्तन का मूल कारण लोभ था। जब की सल्तनत काल में धर्म परिवर्तन का मोल कारण भय था।

ईसाई मिशनरी पुर्तगाल के द्वारा पहली बार आईं। उनका प्रभाव गोवाऔर कोंकण के इलाके और मुंबई में था। फिर अंगेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी आयी। इनके साथ भी ईसाई पादरी आये। उन्होंने जानबूझ कर हिन्दू धर्म की पुस्तकों और संस्कृति को दकियानूसी साबित करने की कोशिश की। बंगाल में भी धर्म परिवर्तन हुआ। माइकेल मधुसूदन दत्त जो बांगला के ओरसिद्द्ध कवि थे ने भी ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया। पर तभी बंगाल में पुनर्जागरण का काल प्रारम्भ हुआ। लोग भारतीय दर्शन को नए दृष्टिकोण से देखने लगे। ब्र्रह्म समाज जैसे संगठनों ने बढ़ती ईसाइयत के विरुद्ध लोहा लिया। फिर जब स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद हुए तो सनातन धर्म में एक नयी ऊर्जा आयी।

ईसाई मिशनरियों ने धर्म परिवर्तन के लिए दलित और वंचितों में प्रवेश किया। चूँकि ब्रिटिश राज था इस लिए सम्मान और कुछ ने धन की लोभ में सनातन धर्म छोड़ा। पर तभी हिन्दू धर्म में कुरीतियों के वसिरुद्ध भी स्वर उठा और वहिर्गमन की यह गति काम हुयी। अंतिम  बार सबसे बड़ा धर्म परिवर्तन , बाबा साहब भीम राव आंबेडकर के नेतृत्व में नागपुर में दीक्षा भूमि में हुआ। आम्बेडकर ने जिन्होंने दलितों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया , ने बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया।

सनातन धर्म की यह भी एक विडम्बना रही है कि यह एक राज धर्म कभी नहीं रहा है। बौद्ध धर्म के  पूर्व सारे भारत में जो धर्म प्रचलित था वह वैदिक या ब्राह्मण धर्म था। वह एकेश्वरवाद से लेकर निरीश्वरवाद तक के दर्शन को मानता था। जैसे आज भी आदिवासी और आटविक जातिया हैं , जिनके अपने अपने धर्म और उपासना पद्धति आज भी हैं , उस समय भी ये जातियां थीं और उनकी धार्मिक परम्पराएँ भी अलग थीं। महाभारत में उनका उल्लेख मिलता है। भारत में राज धर्म की कोई परम्परा बौद्ध धर्म के पूर्व नहीं थी। बौद्ध धर्म में भी राजा का धर्म तो बौद्ध था पर सारी प्रजा बौद्ध हो ऐसा भी नहीं था। ब्राह्मण धर्म भी था। और दोनों धर्मों में कोई झगड़ा भी बहुत नहीं होता था। ऐसा सिर्फ इसलिए की सनातन परम्परा में सभी को साथ ले कर चलने की अद्भुत प्रेरणा थी वेदों में ही संगच्छध्वम् के मन्त्र इसे स्वतः स्पष्ट कर देते हैं।
अशोक बौद्ध हो गया था। और उसके पितामह चन्द्रगुप्त ने अपने अंतिम दिनों में जैन धर्म अपना लिया था। उसके बाद लम्बे समय तक कोई राज धर्म की धारणा नहीं रही। राजा का अपना और प्रजा का अपना धर्म था। राज्य का धर्म के मामले में कोई हस्तक्षेप भी नहीं था। यह यही कारण है कि हज़ार साल तक इस्लाम मतावलम्बी शासकों के रहने के बावजूद भी सनातन धर्म अपनी पूरी जिजीविषा के साथ जीवित रहा। राज धर्म न रहने के कारण ही भारत में व्यापक सामूहिक धर्मांतरण नहीं हो पाया।
इसके विपरीत सेमेटिक धर्मों मे जो ईसाई और इस्लाम प्रमुखतः है में राज धर्म की एक परंपरा रही है। चर्च और राज्य में कोई अंतर नहीं रहा है। इसलिए जब जब ऐसे धर्मों के प्रसार की बात आयी तो राज्य ने भरपूर सहयोग ही नहीं दिया बल्कि युद्ध भी लड़े।  इस्लाम में पैगम्बर हजरत मुहम्मद के बाद जो खलीफा नियुक्त हुए वे धर्म और राज्य दोनों के ही प्रमुख थे। हालांकि मुग़ल बादशाहों ने इन खलीफाओं को कोई मान्यता नहीं दी थी। सनातन धर्म में धर्म प्रचार की कोई अवधारणा होने के कारण ही सनातन धर्म में धर्मांतरण होने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। इसी स्वामी लिए दयानंद का आंदोलन इसे धर्मांतरण नहीं शुद्धि आंदोलन और अभी वी एच पी का यह अभियान घर वापसी कहा गया। 
सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यहां यह उठता है कि , सामूहिक और व्यापक धर्म परिवर्तन सनातन धर्म से अन्य धर्मों ही क्यों  हुआ ?
सनातन धर्म के रक्षकों ने इसे रोकने के सार्थक उपाय क्यों नहीं किये ?
अगर उपाय किये तो उनका असर क्यों नहीं हुआ ?
क्या इस व्यापक धर्म परिवर्तन के लिए  धर्म की रूढ़ियाँ जो वास्तव में धर्म की नहीं बल्कि कुछ धर्म के ठेकेदारों द्वारा थोपी गयी है क्या जिम्मेदार नहीं है ?

आप सिर्फ दूसरे धर्म को गरिया कर , उनकी निंदा कर के , उन्हें अपशब्द कह के अपने धर्म से निकलने वालों का मार्ग नहीं रोक सकते  हैं। इसी लिये  कहा गया है आत्म दीपो भव  ! मित्रों आत्म मंथन करें और सोचें अगर सच में धर्मांतरण के प्रति आप चिंतित हैं तो।
-vss.


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