Wednesday 25 February 2015

हवाएँ भला कब किसी की हुयी हैं ! / विजय शंकर सिंह



दो साल पहले आज की सत्ताधारी पार्टी के लिए, यही अन्ना देश के लिए उम्मीद की किरण थे. परिवर्तन की लहर थे. भरष्टाचार के असुर के संहार के लिए अवतार थे. क्यों कि वे उनके हित साधक थे. आज वह बूढ़े हो गए है, सठिया गए हैं और धूर्त चेलों को पैदा करने वाले नक्सल और अराजक हो गए हैं. देश में कोई भी सरकार अगर जन विरोधी, और दंभी है तो उसका अंत होता है. यहां तक कि राजतंत्र में भी, अगर राजा अहंकारी और प्रजा द्रोही रहा है तो वह भी विनाश को ही प्राप्त हुआ है.

वर्तमान सरकार, बहुत ही उम्मीदों के ाथ, एक भ्रष्ट हो चुकी सरकार को अपदस्थ कर के आयी है. इसे चाहिए कि कोई भी काम जन विरोधी हो. भूमि अधिग्रहण क़ानून केवल और केवल पूंजीपतियों, ज़मीन के दलालों और भृष्ट अफसरों और नेताओं को ही लाभ पहुंचाएगा, किसानों को नहीं. जनता यह जान गयी है कि, उसका हित किसमें है. अन्ना महत्वपूर्ण नहीं हैं वे परिस्थितियां महत्वपूर्ण हैं जिनमे अन्ना जैसे एक सामान्य व्यक्ति सर्वशक्तिमान सत्ता के लिए खतरा बन जाते हैं. मोदी भी ऐसी ही परिस्थितियों की उपज हैं. जिस आंधी या सुनामी ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वही आंधी और सुनामी उन्हें हटा भी सकती हैं .

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