Wednesday 18 February 2015

धर्म निरपेक्षता पर भारत को ओबामा का उपदेश / विजय शंकर सिंह



इधर चर्चों पर कुछ हमले हुए. उधर अमेरिका में एक मंदिर पर. इधर घर वापसी शुरू हुयी उधर गेट आउट का बोर्ड लगा. बराक से दोस्ती इतनी कि हंसी मज़ाक का नाता है. हॉट लाइन है. दुक्खम सुक्खम , बोल बतिया के बांटने के रिश्ते है. पर अधिकार सुख बड़ा मादक होता है. सारी दोस्ती के बावज़ूद भी, यहीं सीरी फोर्ट में सबके सामने कह गया वह कि क़ायदे से रहो. उसी क़ायदे क़ानून से जिसके जश्न में बुलाया था तुमने. अरे यह सलाह तो चुपके से भी दी जा सकती है. लेकिन जब मक़सद सलाह देना हो तब . मक़सद तो भौकाल दिखाना था. तभी तो, आने के पहले उसने पाकिस्तान को दांट पिलाई कि मेरे रहने तक नो शैतानी. नो गड़बड़. पाकिस्तान भला आक़ा की बात कैसे टाल सकता है. उसके तो तीन ही खेवनहार हैं, अल्लाह, आर्मी और अमेरिका. अल्लाह तो जोड़े रखने के लिए, आर्मी हुक़ूमत के लिए और अमेरिका, तो खर्चों के लिए. अमेरिका भी क्या करे. पहले इधर रूस था, अब चीन है. उसे मोहल्ले में एक बिगड़ैल लोफर चाहिए था सो उसने पाल लिया. धन की उसे कमी भी तो नहीं है.

बात यहीं नहीं रुकी. अमेरिका पहुँच कर भी अपने बराक भाई ने दोस्ती नहीं निभाई. व्हाइट हाउस में, दलाई लामा आये थे. वही दलाई यानी प्रमुख लामा, तिब्बत के धर्म गुरु, जिनके कारणचीन से हमारे सम्बन्ध खट्टे हुए. खैर यह तो दुनियावी कारोबार है. दुनिया में कौन बराबर किसी का दोस्त और दुश्मन रहा है ! उनका खूब स्वागत हुआ. अमेरिका उनसे दोस्ती निभाये या नहीं पर चीन को तो गाहे गाहे चिढ़ाना भी तो है. वहीं बात चली तो कह दिया कि गांधी होते तो, आज भारत में साम्प्रदायिक उन्माद की स्थिति को देख कर दुखी होंगे. गांधी जब मरे थे तभी कौन बहुत मस्त थे. वह मर तो पहले ही गए थे, जब पूरा मुल्क ईश्वर और अल्लाह को कंधे पर बैठाये लड़ मरने को युयुत्सु था. इसी साम्प्रदायिक उन्माद से पगलाये एक आदमी ने उनको प्रणाम कर गोली दाग दी. अब सूना उसके भी दिन फिरे हैं. कहीं मंदिर की सुगबुगाहट भी चल रही है. खैर जो भी हो. तो किस्सा गोई तो थोड़ा बहकती भी है .

हाँ तो फिर दलाई लामा के सामने एक नसीहत दी गयी. कि हम सभी धर्मों का आदर करें. धर्म निरपेक्षता से रहें. आदि आदि. न्यूयॉर्क टाइम्स का संपादकीय पढ़ा आपने ? मैंने लिंक भेजा तो है. खैर फिर भेज दूंगा. एक क्लिक ही तो करना है. उसने तो ऐसा कहा जैसे देश में सब मरने मारने पर उतारू हो गए है. यह वही अमेरिका है, जिसकी कोई संस्कृति नहीं  है. जिसकी कोई सभ्यता नहीं है, जिसका कोई इतिहास नहीं है. यह वही अमेरिका है जिसने वहाँ के मूल बाशिंदों की नस्ल समाप्त कर दी. यह वही अमेरिका है, जिसने रंगभेद बनाये रखने के लिए कई साल तक गृह युद्ध में जलता रहा. याद कीजिए उपन्यास, गॉन विथ विंड. भला हो अब्राहम लिंकन का, जिन्होंने इसे दूर किया. पर आज भी रंगभेद का भूत उतरा नहीं है. ओबामा अपने दिल पर हाँथ रखेंगे तो खुद ही स्थीस्कोप सा महसूस कर लेंगे. यह वही अमेरिका है, जिसने जापान के दो बड़े नगरों को ऐसा तबाह कर दिया कि वहाँ आज भी जो नस्लें पैदा हो रही है, वह अपंग हो रही है. 1991 से ईराक पर हमले के बाद जो तबाही और बदले की आग मध्य एशिया में फ़ैली वह तीसरे महायुद्ध का कारण भी बनेगी. आज जब ऐसी पृष्ठभूमि वाला देश, केवल अपने आर्थिक सम्पन्नता के दम्भ में चूर हो कर भारत को धर्म निरपेक्षता का सन्देश देता है तो, हंसी आती है और क्रोध भी.

थोड़ा इतिहास में पैठे. जब ईरान जिसे फारस भी कहा जाता है पर जब इस्लाम का हमला हुआ तो वहाँ पर जो पारसी थे उन्होंने इस्लाम ग्रहण कर लिया. 100 साल में जरशुत्र का धर्म जो वैदिक धर्म से बहुत मिलता जुलता था, बदल गया. जिन लोगों ने धर्म नहीं बदला, वे भारत की ओर आये. आज भी बम्बई में यह वर्ग सम्पन्नता के शिखर पर है. देश के अनेक सम्पन्नघराणों में पारसी घराने भी है. भारत की अस्मिता के लिए ब्रिटिश संसद में आवाज़ उठाने वाले दादा भाई नौरोजी, पारसी ही थे. इन्हें भारतीय स्वाधीनता संग्राम का पितामह कहा जाता है. ओबामा सर, ये हिन्दू नहीं थे. इसाई धर्मों के संत सबसे पहले देश के दक्षिणी भाग में उतरे. कालीकट में उन्होंने चर्च बनाया. कालीकट के लोगों ने उनका स्वागत किया. उन्हें मारा पीटा और भगाया भी नहीं. सारी सुविधाएं दी. जिन्होंने सुविधाएं दीं वे हिन्दू थे, सनातन धर्मी थे. इस्लाम का परिचय भले ही मुहम्मद बिन क़ासिम ने तलवार के द्वारा सिंध में राजा दाहिर को हरा कर 726 ईस्वी में कराया हो, पर इसके सौ साल पहले ही अरब के सौदागरों ने जो व्यापार के लिए इस्लाम के जन्म से पहले ही भारत में आया करते थे, ने मस्ज़िद बनायी और अपने धर्म का प्रचार शुरू कर दिया. स्थानीय जनता ने उनका विरोध कईया होता तो, ऐसा करना संभव भी नहीं होता. सभी पंथों के साथ समरसता इस धर्म और संस्कृति की आत्मा में  है.

पर इधर जो कुछ भी राजनीतिक कारणों से, चुनावी कारणों से धर्म के आधार पर दंगे फसाद हुए हैं या बयान बाज़ी हुयी है वह शुभ संकेत नहीं है.धर्म उचित है पर धर्मान्धता एक उन्माद है. यह उन्माद देश और समाज दोनों के लिए ही घातक है. भारत की अधिसंख्य आबादी चाहे वह किसी भी धर्म के क्यों हो इन दंगों को देश के लिए शुभ नहीं मानते हैं. हमें ओबामा के कहने की चिंता नहीं करनी है. हमें अपने देश की बहु सांस्कृतिक, बहु भाषिक, बहु धार्मिक विरासत बनाये रखनी है. ओबामा जी, जैसेआप के देश में हो रही रंगभेद की कुछ हिंसक घटनाओं और अभी हाल में हुयी एक गुजराती सज्जन के साथ अमेरिकी पुलिस का दुर्व्यवहार और मार पीट, अमेरिकी मानस का प्रतिविम्ब नहीं है वैसे ही भारत में घटने वाली कुछ धर्माधारित घटनाओं से देश के मूल चरित्र , सम धर्म सम भाव, पर खतरा बिलकुल नहीं है. सनातन धर्म और भारतीय मनीषा और संस्कृति में खुद को प्रच्छालित कर साफ़ रखने की गज़ब की क्षमता है. यह इतिहास की धारा से स्वतः सिद्ध है. 
-vss.

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