Monday 12 January 2015

Ada Badayuni../ honthon pe kabhii un ke meraa naam hii aaye.. / होंठों पे कभी उन के मेरा नाम ही आये / अदा बदायुनी

अदा बदायुनी , उर्दू की पहली महिला शायरा कही जाती है। 22 अगस्त 1924 को बदायूं में जन्मी यह शायरा बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गयीं थी। उन्होंने पाकिस्तान राइटर्स गिल्ड का आदम जी लिटरेरी एवार्ड , 1967 में और पाकिस्तान सरकार के  मेडल ऑफ़ एक्सेलेंस सम्मान 1981 सहित  अनेक सम्मान प्राप्त किये हैं। अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी उर्दू साहित्य में केवल इन्हे पहचान मिली बल्कि इन्हे सम्मानित भी किया गया।  मुख्यतः इन्होने गज़लें ही लिखी हैं। उन्होंने उर्दू में जापानी शैली की हाइकू में भी कुछ प्रयोग किये हैं। उनके कविता संग्रह में , मैं साज़ ढूंढती रही , जो 1950 में प्रकाशित हुयी उल्लेखनीय है। उन्होंने अपनी आत्मकथा,' जो रही सो बेखबरी रहीकुछ निबंध और साहित्यिक आलोचनाएँ भी लिखी हैं। साज़ सुखन, उनके उर्दू हाईकू का संग्रह है। 

                                                              


होंठों  पे  कभी  उन  के  मेरा  नाम  ही  आये 

होंठों  पे  कभी  उन  के  मेरा  नाम  ही  आये 
आये  तो  सही  बर-सर--इलज़ाम  ही  आये 

हैरान  हैं  लब बस्ता  हैं , दिल -गीर  हैं  गुन्चे
खुश्बू  की  जुबानी तेरा  पैगाम  ही  आये 

लमहात - -मसर्रत हैं  तसव्वर  से   गुरेज़ाँ 
याद  आये  हैं  जब  भी  गम - -आलाम  ही  आये 

तारों  से  सजा  लेंगे  राह - -शहर - -तमन्ना 
मक़दूर  नहीं  सुबहो  चलो  शाम  ही  आये 

यादों  के  वफाओं  के  अकीदों  के  ग़मों  के 
काम  आये  जो  दुनिया  में  तो  इस  नाम  ही  आये 

क्या  राह  बदलने  का  गिला  हम _सफरों  से 
जिस  राह  से  चलें , तेरे  दर - -बाम  ही  आये 

थक  हार  के  बैठे  हैं  सर - -कू - -तमन्ना 
काम  आये  तो  फिर  जज्बा - -नाकाम  ही  आये 

बाकी    रहे  साख  "अदा " दश्त - -जुनून  की 
दिल  में  अगर  अंदेशा - -अंजाम  ही  आये 
--अदा  बदायुनी ..



honthon pe kabhii un ke meraa naam hii aaye

Honthonn pe kabhii un ke meraa naam hii aaye
aaye to sahii bar-sar-e-ilzaam hii aaye

Hairaan hain lab-bastaa hain, dil-giir hain gunche
Khushbuu kii zubaanii teraa paigaam hii aaye

Lamhaat-e-masarrat hain tasawwar se gurezaan
yaad aaye hain jab bhii gam-o-aalaam hii aaye

Taaron se sajaa lenge raah-e-shahar-e-tamannaa
maqaduur nahiin subho chalo shaam hii aaye

Yaadon ke wafaaon ke aqiidon ke gamon ke
kaam aaye jo duniyaa men to is naam hii aaye

Kyaa raah badalane kaa gilaa ham_safaron se
jis raah se chalen, tere dar-o-baam hii aaye

Thak haar ke baithe hain sar-e-kuu-e-tamannaa
kaam aaye to phir jazbaa-e-naakaam hii aaye

Baaqii na rahe saakh "Adaa" dasht-e-junuun kii
dil mein agar andeshaa-e-anjaam hii aaye
--Ada Badayuni..

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