Friday 7 November 2014

एक कविता ........ एक नाविक / विजय शंकर सिंह


एक  नाविक ,
तूफ़ान  से   उफनते  दरिया  को  देख ,
मुस्कुरा  उठा ..
उफान  पर  था  दरिया ,
हवा  तेज  और  तेज  हो  रही  थी ,
लहरें , सिर धुन  रही  थी , साहिल  पर

  जाने  क्या  क्या  कह  रही  थी ,
साहिल  से ,
साहिल , हमेशा  की  तरह ,
खामोश , और  पत्थर  दिल , चुप  चाप  ..
जज़्बात  कैसे  भी  हो ,
कश--कश कैसी  भी  हो ,
दुःख  , कितने   भी  हो ,
शोर  खूब  मचा  हो ,
पर  साहिल  पर  कोई  असर  ही  नहीं ,
निश्चिन्त , निर्विकार ,
आपादमस्तक  भरा , अहंकार  से ,

  जाने  कैसा  दिल , नवाज़ा  है ,
साहिल  को  ईश्वर  ने ,..
सदियाँ  गुज़र  गयी ,
सिर धुनते  लहरों  को ,
पर  साहिल  खामोश , और  बेपरवाह ,
आज  भी  पडा  है ..

याद  आया ,
नाविक  को  एक  वादा , अचानक
पूरा  करना  था  उसे ,
हर  कीमत  पर ,
वक़्त  पर  पहुंचना  था  उसे ,
किसी  के  पास ,
और  तूफ़ान  वैसे  ही  था ,
हहराता  हुआ , शोर  मचाता  हुआ ,

गौर  से  देखा ,उस  ने
सागर  को , लहरों  को , तूफ़ान  को , किश्ती  को ,
फिर  आसमान  को ,
और  उसने  किश्ती  उतार  दी , सागर  में
बह  चली  किश्ती ,
नन्ही  सी ,
उत्ताल  लहरों   में  गिरती  पड़ती ,
ज़िंदगी  की  तरह .
चलती  रहती  है  जो
विपरीत  मौसम  में  भी ,
अपनी  गति  से ,
कुछ  उम्मीदों  के  सहारे ,

आओ  करें , प्रार्थना ,
शांत , हों  वारिध,
हवाएं  खुशगवार  हों ,
नाव  और  नाविक  सलामत  रहें ..
तूफ़ान  अपनी  राह  चले ,
हम  अपनी …..


(विजय शंकर सिंह)

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 20 नवम्बर 2021 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. आओ करें , प्रार्थना ,
    शांत , हों वारिध,
    हवाएं खुशगवार हों ,
    नाव और नाविक सलामत रहें ..
    तूफ़ान अपनी राह चले ,
    हम अपनी …..बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति ।

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