Monday 11 August 2014

एक कविता , तेरा अभाव ,.......विजय शंकर सिंह .


अक्सर , तेरा अभाव ,
व्यथित कर जाता है मुझे !

नम आँखों में ,
कुछ टुकड़े बादलों के लिए
दूर कहीं क्षितिज पर देखता हुआ ,
खामोशी के समुन्दर में डूबता , उतराता रहता हूँ .,

जाने क्या क्या ,
गुजरता रहता है , जेहन में .
हल्की मुस्कराहट से सम्पुटित,
आँखों में छलकते ओस विन्दु ,
पल पल परिवर्तित ,
ऋतु का अभिज्ञान करा जाते हैं !

हर्ष और विषाद का यह अद्भुत प्रयाग ,
मुझे अनजाने लोकों में भटकाता रहता है .
जहां मुझे , केवल
तेरी तलाश है !! 
-vss.

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