Wednesday 7 May 2014

एक कविता..... आंधी…...... विजय शंकर सिंह

(इस कविता की आखिरी पंक्ति ''विकल्पहीन नहीं है दुनिया '' एक पुस्तक है , जिसे प्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक   किशन   पटनायक  ने  लिखा  है.यह कविता उस पुस्तक से प्रभावित है.) 


गर्म  हो  रही  है  दुनिया ,
त्रिअग्नि की  ताप  से  व्याकुल ,
दहक रहा  है  सब  कुछ ,
असह्य ताप  से .

ग्रीष्म पवन  का  हाहाकार ,,
बेधती  आँखे  सूर्य की ,
जला  डालेंगे  सब  अब  तो

नमी  नहीं  है  कहीं,
मर  चुका  है  पानी  उनकी  आँखों  का ,
जिन  पर  जिम्मा  है  प्यास  बुझाने  का .
गुबार  भरी  टूटी  सड़कें,  
सूखे, जल हीन,   खेत ,,
झुलसे , थके , छले  चेहरे ,
अन्नदाताओं  के ,
आँखे  ताकती  दूर  कहीं  दिगंत   में ,
निहारती  हैं  शून्य  को  शून्य  से ,
तलाश  है  उन्हें  मुट्ठी  भर  मेघ  की .,

पर  धूसर  आसमान ,
बंजर  गगन ,
अब  तोड़ो  इस  सन्नाटे  को .
लाओ , एक  आंधी  अब ,
तेज़  धूल  भरी ,
आशाओं  को  समेटे ,
मेघों  की  बरात  लिए ,
तीव्र  चक्रवातीय  पवन .
तोड़  दे  जो  सारा  गुरूर  उनका ,
उन  के  मौसम  का .
जो  सोच  बैठे  हैं ,
ताप  कितना  भी  बढे ,
सह  लेंगे  लोग .

धीरज  नहीं  खोना  चाहिए ,
पर   अतिशय   धैर्य , 
अकर्मण्यता  है , जो ,
धकेल  रहा  है   हमें ,
पत्थर  के  एक  अंधे  सूखे  कुएं  में ,
जो  पटे पड़े  हैं  सरीसृपों  से ,
रक्त पिपासु  !

नियति , प्रारब्ध, और भाग्य, सब ,
झूठ , फरेब  और  छलावा  हैं ,
नाम  पर  जिस  के  चूसते  रहे  हैं ,
पाखंडी , ध्वजावाहक .

आओ   एक  आंधी  लायें ,
तेज़  और  बहुत  तेज़ .
ताप , जब  लांघ  जाता  है  सीमा  अपनी ,
हठ, जब  बन  जाता  है ,
स्थायी  भाव , राजधर्म  का ,
बन  जाते  हैं  मदारी जब  भाग्य  विधाता .
पाप  से  अर्जित  धन ,
जब बन जाता है प्रतिष्ठा का मापदंड 
घुस  जाता  है  जब  कछुआ   अपने  खोल  में ,
पांच  सालों  के  लिए ,
और  सुरक्छित  समझने  लगता  है .
खुद को .
भूल  जाता  है  जब  सारे  वादे  ,
अहंकार   में  डूबी  आँखें 
जब  नहीं  देख  पाती  विकल्प,
हो  जाता  है  राज्य असह्य तब ,

आंधी  आती  है ,
काल  बैसाखी  की  तरह .
दूर  किसी कोने  से  मेघों  की  सेना   लेकर  .
काले , काले , उमड़ते  घुमड़ते  ,
और  आसमान  से  बरसता  है  अमृत 
ताप  हरता  है ,
और  फूटतीं है ,
नयी  कोंपलें  उम्मीदों  की ,
आकार  लेती  है  एक   नयी  दुनिया ....
जो विकल्पहीन  नहीं  है….
 -vss.



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