Monday 13 January 2014

एक कविता .... कुछ टुकड़े ख्वाब.....




एक कविता ....
कुछ टुकड़े ख्वाब.....

रात सिरहाने मेरे ,
कुछ टुकड़े ख्वाब रख गया था कोई ,
तुम कितने अपने लगे थे ,
ख्वाब में  !

रात कितनी देर तक ,
बाते करते रहे हम .
रात कब आयी , और ढल गयी ,
जान भी पाए .

एक हल्की आभा आसमान में ,
झाँकने लगी .
हताश अन्धकार छटने लगा ,
भोर के सपनों की मुस्कान का बसेरा ,
मेरे अधरों पर था !

आत्मविश्वास से भरा हुआ
उम्मीदों के कपोल पर
मैंने अपने अधर रख   दिये ,
अब मेरा  पथ आलोकित है !!

-vss 

1 comment:

  1. बहुत सुंदर बन पड़ी है.बधाई.

    ReplyDelete