Monday 14 October 2013

धर्म को अधर्म से बचायें..



ईश्वर , अल्लाह , येहोबा , खुदा ,गॉड , ये शब्द हैं उस परम सत्ता के लिए जो विभिन्न भाषाओं में प्रयोग किये जाते हैं .जिन धर्मों का जन्म जहां हुआ , और जिन धर्मों का प्रतिपादन जिन देशों में जन्मे पैगम्बरों ने किया वहाँ की भाषा में उस परम सत्ता को पुकारा गया .संस्कृत में ईश्वर , अरबी में अल्लाह ,फारसी में खुदा , अंग्रेज़ी में या लैटिन , हिब्रू में गॉड कहा गया .उद्देश्य सिर्फ उस परम सत्ता की कृपा प्राप्त करना रहा है .

यही हाल धर्म ग्रंथों का है . अक्सर संस्कृत को देव भाषा कहा जाता है . कुछ लोग अरबी को अल्लाह की जुबां कहते हैं . यह सिर्फ इस लिए है कि हिन्दू धर्म की सारे ग्रन्थ संस्कृत में हैं, जो उस काल की भाषा थी . हालांकि भाषा में भी परिवर्तन होता आया है
बाद में जब बुद्ध आये तो उन्होंने अपने उपदेश पाली में दिए जो उस समय की जन भाषा थी .इसी लिए  समस्त बौद्ध साहित्य पली भाषा में है . इसी प्रकार जब हजरत मोहम्मद साहेब को इल्हाम हुआ तो उन्होंने अपनी भाषा में जो अरबी थी , में अपने इलहाम को कहा और इस प्रकार कुरान नाजिल हुयी . कुरान की भाषा के अरबी होने के कारण इस भाषा का मह्त्व बढ़ा और जैसे संस्कृत देव भाषा कही गयी उसी प्रकार अरबी को भी अल्लाह की जुबां कहा गया .आज भी सब ईश्वर की आराधना अपने अपने भावों के अनुसार अपनी अपनी भाषा में करते हैं .

आज मलेसिया की  एक अदालत ने गैर मुस्लिमों के लिए अल्लाह शब्द के प्रयोग पर पाबंदी लगाई है . जब की यह शब्द मलय भाषा का नहीं है . मुझे यह नहीं पता कि मलय भाषा में इश्वर या अल्लाह को क्या कहते हैं . यह फैसला धर्म और इश्वर को संकीर्ण बनाता है जब की अल्लाह को असीम और पूरी कायनात का नियंता माना गया है  यह फैसला मेरी समझ से परे है .

जैसे जैसे हम भौतिक उन्नति करते जा रहे हैं वैसे वैसे हमारी सोच का आयाम और चिंतन प्रक्रिया संकुचित होती जा रही है .कभी कभी सोचता हूँ , यदि कबीर इस युग में पैदा हुए होते तो वह कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून में निरुद्ध हुए होते और सभी धर्मों के ठेकेदार उनके विरोध में मतभेद भुला कर एक हो गए होते . जब कि उन्होंने धर्म और ईश्वर पर नहीं उन ठेकेदारों के स्वार्थ पर चोट किया था .
धर्म की आड़ में छिपी हुयी कट्टरता न सिर्फ धर्म को नष्ट करेगी बल्कि आपसी झगडे के रूप में महाविनाश की और ले जायेगी .

धर्म विस्तार के लिए जो प्रयास और युद्ध हुए हैं ,या हो रहे हैं वे वस्तुतः साम्राज्य विस्तार के लिए ही होते हैं . पहले भौतिक साम्राज्य की लालसा थी अब आर्थिक साम्राज्य की इच्छा हो गयी है .धर्म की चाशनी से युयुत्सु सैनिक युद्ध रत होने के लिए अधिक कटिबद्ध हो जाते हैं . इसी लिए प्रत्येक युद्ध में धार्मिक उन्माद चरम पर होता है .क्या विडम्बना है कि धर्म की परिकल्पना जो हमें मनुश्यत्व की और ले जाने वाले महान नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने के लिए की गयी है वह हमें विनाश के गह्वर में डाल रही है .हम खुद को ईश्वर का ध्वजा वाहक मान बैठते हैं , जिस के एकत्व और सर्वव्यापी होने के तमाम प्रमाण हम स्वयं ही प्रस्तुत करते रहते हैं दर असल धर्म और ईश्वर तो एक बहाना है , शेष उस की आड़ में स्वार्थी पौरोहित्यावाद और साम्राज्य लोलुप राजवंशो के विस्तार और स्वार्थ कथा है

धर्म का जो स्वरुप प्रस्तुत किया जा रहा है , समाज को जोड़ने वाला कम तोड़ने वाला अधिक दिख रहा है .ईश्वर के साम्राज्य का विस्तार करने के लिए निर्दोषों की ह्त्या की जाती है, जिस के बारे में अक्सर यह दावा किया जाता है कि सारा ब्रह्माण्ड उसी का है और वह सब में सामान रूप से व्याप्त है . धर्म, ईश्वर और आस्था का जो बाजारीकरण और मार्केटिंग हो रही है वह किस प्रकार की आस्था है मैं नहीं समझ प् रहा हूँ . .हमें धर्म के इन ठेकेदारों से दूर रहना चाहिए .वस्तुतः यह धार्मिक नहीं धर्म की मौलिक आधार के ही विपरीत है . धर्म की खोल ओढ़े इन भेडियों को पहचाने और उन से दूर रहें .

आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है धर्म को स्वार्थी पौरोहित्यवाद और ठेकेदारी से मुक्त करें सारे धर्म एक ही लक्ष्य की और जाते हैं। सत्य एक ही है , विद्वान् उसे अलग अलग नामों से पुकारते हैं .



1 comment:

  1. मै नहीं मानता की सत्य एक ही है । मै नहीं मानता की सारे धर्मं एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते है । यदि आप गौर से देखें तो गौतम बुद्ध ने किसी एक ईश्वर का सन्देश नहीं दिया, नाही नानक ने । जिसे आप इतनी आसानी से पुरोहितवाद और ठेकेदारी कहते है क्या उस गुरु परंपरा का कोई महत्व नहीं ?

    आपका यकीं एक परम सत्ता पर हो सकता है, पर यह आवश्यक तो नहीं की हर कोई उस एक ही परम सत्ता वे विश्वास रखे !

    यदि आप अल्लाह, खुद, गौड और इश्वर में अंतर नहीं कर सकते है तो इसका अर्थ ये नहीं की कोई और भी न करे । भेद समझ कर मिल जुल के रहना भेद भुला कर अपनी धरोहर को खो देने से तो हमेशा बेहतर है |

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