Thursday 14 March 2013

आतंकवाद और हमारी सरकार की इच्छा शक्ति....



आतंकवाद और हमारी सरकार की इच्छा शक्ति ...

आज पाकिस्तान की संसद ने समस्त अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और परम्पराओं को धता बताते हुए एक अजीब प्रस्ताव पारित किया है . प्रस्ताव है निंदा का और प्रकरण है अफज़ल गुरु की फांसी का . यह भी मांग राखी गयी कि, अफज़ल का शव उस के परिजनों को दिया जाय . आप भी ये जानते हैं इस प्रस्ताव की न तो कोई वैधानिक मान्यता है , न ही इस से कुछ होने वाला है . लेकिन इस से एक बार और ये बात प्रमाणित हुयी कि भारत में आतंकवाद पाकिस्तान फैला रहा है . यह बात हम ही नहीं बल्कि दुनिया के सारे देश जानते हैं पर कहते नहीं , क्योंकि सबके अपने अपने स्वार्थ हैं .

हाल ही में अभी, सी आर पी एफ  के कैम्प पर  क्रिकेट खेलते बच्चों के साथ उन की आड़  में हमला हुआ और 5 जवानों की मृत्यु हो गयी . 2 आतंकवादी भी मारे गए .इस घटना से फिर वही सिलसिला  शुरू हो जाएगा, जो अमूमन ऐसी घटनाओं के बाद होने लगता है .लास्ट पोस्ट , शहीदों के परिजनों को मुआवजा , आश्रितों को सरकारी नौकरी, आतंकवाद के खिलाफ कुछ कड़े वाक्य ,और चीजें फिर वहीं की वहीं . और अगर गलती से कोई निर्दोष पूछताछ के लिए उठाया गया तो ,मानवाधिकार वादियों की चख चख .. कुछ वाक्य भी शेयर स्टॉक की तरह होते लगे हैं इस कट और पेस्ट के युग में उन्हें बस वहीं चिपका दीजिये जैसे '' आतंकी हमला बर्दाश्त नहीं ,'' '' हम चुप नहीं बैठेंगे” , '' हमने चूडिया नहीं पहन रखी हैं ,'' आतंक का कोई रंग नहीं होता है '' , आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या है .'' आदि-आदि. इन वक्तव्यों के बाद फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है . जैसे कोई बेहद यथार्थवादी फिल्म, समाप्त हो गयी हो और हम परदे की आभासी दुनिया से निकल कर फिर पॉप कोर्न और कॉफी की दुनिया में आ गए हैं .

दरअसल हमने आतंकवाद की समस्या को एक कैजुअल रूप में लिया है और इसके समाधान के लिए हमने जो उपाय किये उस पर तदर्थवाद हावी रहा है . ऐसा देश की अन्य समस्याओं के लिए भी हमारा यही रुख रहा है . चाहे पुलिस सुधार का मामला हो ,  जन सरोकार से जुडी योजनायें हों , विदेश निति का मामला हो , काले धन से जुडी समस्या हो  या भ्रष्टाचार के मामले हों , हम ने सिर्फ चालू रवैया  अपनाया है ,  आतंकवाद के मुद्दे पर तो कोई ठोस रणनीति बनी ही नहीं . कहीं राज्यों का स्वार्थ आड़े आ गया तो कहीं केन्द्रीय सरकार का .आतंकवाद को हमेशा एक धर्म विशेष से जोड़ कर देखने पर हमने यह समस्या तो हल नहीं की , नयी समस्याओं में और उलझ गए .सारे मामलो पर हम विचार करते रहे पर देश की सुरक्षा को हमने नेपथ्य में धकेल दिया . आतंकवाद भी पक्ष और विपक्ष में अखाड़े बाज़ी का एक खेल बन गया .

सरकार को आंतकी अपराधों को सामान्य हिंसा के अपराधों से अलग कर देखना होगा . हालांकि आई पी सी में इसे अलग से देखने का प्रावधान नहीं है .पर एक हत्या किसी व्यक्ति और किसी समाज के खिलाफ होती है , जब कि आतंकी हिंसा , देश की अस्मिता के विरुद्ध होती है यह निश्चित रूप से देश के विरुद्ध हमला है . चाहे 26/11 का मुंबई हमला हो, या कश्मीर में घटने वाली घटनाएं हों या समझौता एक्सप्रेस जैसी घटनाएं हों . या अक्सर होने वाले नक्सली हमले हों . यह सारी वारदातें देश को चुनौती देती हैं और उनका उद्देश्य देश को खोखला करना है .जब तक हम इस तरह के हमलों को गंभीरता से नहीं लेंगे हम इस का कोई निदान नहीं ढूंढ पायेंगे और सामान्य हिंसा के अपराधों की तरह इस से निपटते रहेंगे . इस से चीजें और बिगड़ेंगी , बनेंगी नहीं .

अमेरिका से हमें सीखना होगा जिस ने 9/11 के बाद कोई भी घटना अपने यहाँ नहीं होने दिया . आतंकवाद के प्रति उन की सोच और उस से निपटने के तरीके भी हमें अपनाना होगा .यह अब प्रमाणित है कि भारत में घटने वाली अधिकाँश  आतंकवादी घटनाओँ के तार सीमा पार से जुड़े होते हैं और पाकिस्तान की संसद ने अफज़ल के मामले में निंदा प्रस्ताव पारित कर इसे और पुख्ता कर दिया है . न सिर्फ इन घटनाओं के पीछे पाक का हाथ है, बल्कि पाक की यह रणनीति है कि , वह भारत को खोखला करे . और इस रणनीति पर अक्सर आई एस आई , और पाक सेना , अक्सर शोध भी करती रहती है .यह एक प्रकार का छद्म युद्ध है . हमें बचपन में पढ़ें ट्रॉय का घोड़ा , और वैशाली गणराज्य के पतन में वस्सकार की भूमिका की कथा नहीं भूलनी चाहिए .हम इस रणनीतिक चाल को बहुत ही कजुअल तरीके से ले रहे हैं .

हमारे सुरक्षा बल , किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष या परोक्ष युद्ध से निपटने में , मानसिक , शारीरिक , और रणनीतिक रूप से पूर्ण सक्षम हैं  इन घटनाओं का सुरक्षा बालों ने जवाब भी दिया है ..देह के दुश्मन भी इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं . लेकिन इन समस्याओं से निपटने में राजनितिक इच्छा शक्ति बहुत मायने रखती है .दुर्भाग्य से सरकार की सोच और इच्छा शक्ति उतनी दृढ नहीं दिखती है , जितनी होनी चाहिए .सरकार और विपक्ष दोनों ही इन घटनाओं से चिंतिंत तो दिखती हैं पर उस चिंता से निपटने का कोई उचित उपाय नहीं ढूंढ पा रहे हैं .. यह एक प्रकार का संशय है . और संशय विनाश को आमंत्रित करता है .. घरेलू मामलों में ढुलमुल रवैये से जो हानि होती है , उसे तो सहा जा सकता है , पर जहां देश की सुरक्षा , अस्मिता , और सार्वभौमिकता पर ही खतरा हो, वहाँ तो ढुलमुल रवैया आत्मघाती ही होगा .

सरकार को आतंकवाद के सवाल पर , एक ठोस निति बनानी चाहिए , और सुरक्षा बालों को एक स्पष्ट सन्देश देना चाहिए कि आतंकी हमला से उसी प्रकार निपटना होगा जैसा हम विदेशी हमलों से निपटते हैं .सुरक्षा बलों के जवान शहीद होने से डरते नहीं हैं लेकिन अनावश्यक शहीद होना कोई बुद्धिमानी नहीं है  जिस ने भी यह सेवा चुनी है वह आकस्मिक और असामायिक मृत्यु के लिए तैयार रहता है , देश के लिए जान देने की ज़रुरत उतनी नहीं है , जितनी उनकी जान लेने की है जो इसे तोड़ने की साज़िश कर रहे हैं .हमारी इच्छा शक्ति और आतंकवाद के विरुद्ध हमारा दृष्टिकोण कठोर तो हो ही , पर वह कठोर दिखे भी .




2 comments:

  1. लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
    तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में

    फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
    कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में

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