Monday 11 February 2013

कुंभ का हादसा






कुंभ का हादसा

कुंभ मेला इलाहाबाद में कल शाम एक दर्दनाक हादसे में इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में ३६ यात्री मर गये और बहुत से घायल हो गये . मेला क्षेत्र में भी एक अलग हादसे में व्यक्ति मारे गये . कुंभ में यह पहला हादसा नहीं है . इस के पहले भी २००९, हरिद्वार, १९८६ , हरिद्वार , १९५४ इलाहाबद, और नासिक कुंभ में भी इस प्रकार के हादसे हो चुके हैं. १९५४ में तो इलाहाबाद में जो दुर्घटना हुई थी , में १००० व्यक्तियों की जान गयी थी . इसी प्रकार रेलवे स्टेशन पर भी यह पहला हादसा नहीं है . इस के पूर्व लखनऊ में चारबाग स्टेशन पर १९९७ में बसपा की रॅली से लौटते हुए इसी प्रकार का हादसा हुआ था , हादसों का यह आँकड़ा मैं इस लिए नहीं प्रस्तुत कर रहा हूँ क़ि इन हादसों को आवश्यक ठहरा सकूँ .बल्कि इस लिए की तमाम प्रगति के बावज़ूद और इस सूचना क्रांति के युग मैं भी कहीं कहीं कोई कमी रह जाती है , जिस से हादसे हो जाते हैं .फिलहाल उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री ने अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी समझते हुए त्याग पत्र दे दिया है . हर हादसे की तरह इस हादसे की भी जाँच होगी . लोग अपनी भड़ास निकालेंगे , हमेशा की तरह सरकार, पुलिस, रेलवे को कोसा जाएगा , मामला केंद्र और राज्य सरकार के बीच उछलता रहेगा , थाना जीआरपी इलाहाबाद के कुछ अधिकारी निलंबित होंगे , आरपीएफ , के लोग तबादला होंगे , कुछ धन किी घोषणा होगी , और एक शोर के बाद गाड़ी चल देगी क्यों कि जीवन तो चलना ही है . 

बहुत दिनों से कहा जाता है कि कुंभ में करोणो लोग एकत्र होते हैं और उन के लिए व्यवस्थाएँ की जाती हैं . मेले की व्यवस्था के लिए , पूरा एक प्रशासनिक ढाँचा बनता है . एक ज़िले में जैसी व्यवस्था होती है , वैसी और अक्सर उस से अधिक व्यवस्था होती है . लेकिन इस हादसे में जो स्टेशन पर हुआ है , इस में कहा जा रहा है कि प्लेटफार्म बदलने के कारण भारी संख्या में यात्रियों के इधर से उधर जाने के कारण और इसी में पुलिस द्वारा लाठियाँ पटकने के कारण अचानक भगदड़ मच गयी और कुचल कर मर गये .इसी प्रकार का हादसा १९९७ में चारबाग में भी हुआ था . 

सामान्य दिनों में भी अगर आप किसी बड़े स्टेशन पर जाएँ तो आप को प्लेटफार्म पर अजब सी अव्यवस्था दिखती है . वेंडर्स , पार्सल से भरे प्लेटफार्म , भिखारियों की भीड़ , जितने यात्री नहीं उन से अधिक विदा करने वाले लोग , सब मिला कर एक अव्यवस्थित माहॉल . उसी में अगर प्लेटफार्म बदल जाए तो अफ़रा तफ़री मचना स्वाभाविक है . रेलवे को अब इन हादसों से सीखना होगा . कम से कम मेलों , रैलियों , और विभिन्न नेताओं के स्वागत , विदा में एकत्र भीड़ के लिए उसे अतिरिक्त व्यवस्था करनी होगी . यह भी देखना होगा कि , जिन्हे जाना हो वही प्लेटफार्म पर जाएँ . वहाँ तफरीह और समय बिताने के लिए नहीं जाएँ . जैसी व्यवस्था हवाई अड्डों पर होती है , उतना तो संभव नहीं है , पर थोड़ी बहुत व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी . कम से कम उन स्टेशन पर जहाँ यात्रियों और रेलवे यातायात सघन है . 
सरकार , पुलिस का दायित्व भीड़ नियंत्रण और मेला बंदोबस्त का है . पर जनता का भी सहयोग अपेक्षित है .इस घटना विशेष के सन्दर्भ में कुछ कहना अभी जल्दीबाज़ी होगी , क्यों कि इस घटना की जाँच होगी और ज़िम्मेदारी तय की जाएगी . लेकिन यह कुव्यवस्था , लापरवाही , असंवेदनशीलता तो है ही . बहुत से लोग यह तर्क देते हैं कि इस मौके पर मुख्य मंत्री को जाना चाहिए . मेरा मानना है कि मुख्य मंत्री को इस अवसर पर बिल्कुल नहीं जाना चाहिए . उन के जाने से राहत कार्य में बाधा पहुँचने की संभावना रहेगी . क्यों कि प्रशासनिक अमला उनके आगमन की औपचारिकताओं में व्यस्त हो जाएगा . सब से बड़ी बात यह होनी चाहिए कि , जाँच करा कर , जो दोषी अधिकारी और कर्मचारी हों उन्हे दंडित किया जाना चाहिए और यह काम देर से नहीं किया जाना चाहिए.

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