Wednesday 13 February 2013

A Poem... क्या प्रेम का भी कोई दिन होता है !



क्या प्रेम का भी कोई दिन होता है !

क्या प्रेम का भी कोई दिन होता है ?
क्या भावनाओं  के  ज्वार का भी ,
कोई दिन होता है !
क्या   उसे सिर्फ आज बताऊँ कि ,
कितना चाहता हूँ ,

आँखों में सिमटा दरिया ,
और ,
दिल के किसी कोने में बन रहा ,
मधुर झंझावात ,
कहीं आज ही बरसता है क्या .
सब कुछ उड़ा ले जाता है यह तूफ़ान ,
सिर्फ उसे पाने की उद्दाम ख्वाहिश छोड़ कर ,

एक सागर है प्यार ,
हहराता हुआ , आह्लादित करता हुआ ,
कभी उन्माद से भरा ,
कभी चुप चुप ,
कभी समेटे अनजाने जज्बातों को ,
कभी मुक्त पवन सा ,
सहलाते ,बदन को ,
कितने रंग दिखा जाता है .

मेरे प्यार के वह पल ,
जिन में हुयी नातमाम गुफ्तगू ,
क्या सिर्फ आज ही याद आयेगी ?
कैसे समेटूं इतने ख़्वाबों ,
इतनी यादों को सिर्फ आज के दिन .

मेरा इश्क ,
मोहताज़ नहीं है ,इजहार का ,
रूह को रूह से समेटता हुआ ,
चाँद सितारों की सैर कराता,
धड़कता रहता है मेरे भीतर !

प्यार है यह ,
व्यापार नही है प्यार का .
क्या प्रेम का भी कोई दिन होता है ,
मेरे दोस्त ?,
-vss

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