Sunday 10 February 2013

A Poem...आज फिर तुम मिले




आज फिर तुम मिले ,




आज फिर तुम मिले , 


वही सपनों में डूबी हुई , 
'अमिय, हलाहल, मद भरी ,'  
‘ तीर ए नीमकश सी, ’ 
ख्वाबीदा ख्वाबीदा आँखे लिए , 

वही सिलसिला सोच का, 
रोज़ की तरह , 
पहले तुम , पहले तुम, की लिए मनुहार , 

दिल में किसी दूर वीराने से उठता हुआ , 
एक बगूला , चाहतों का तूफान लिए , 
आज फिर घेर लिया है मुझे काल बैसाखी की तरह , 
कितने ख़याल , कितने ज़ज्बात , 
बातें कहाँ कहाँ की , 
आ कर ज़ुबान पर ठहर गयी हैं . 

आओ अब घुसें शब्दों की भीड़ में , 
तलाश करें कुछ शब्द , कुछ भाव , 
पिरोएँ तुम्हारे लिए , 
और रच दें कुछ ऐसा कि , 
दास्ताँ तो मुख़्तसर हो , 
पर लोग सुनते रहें ,  
और भींगते रहें , 
पावस की उस फुहार में , 
जो देती है ,  
केवल आनन्द और आनन्द !! 
-vss




No comments:

Post a Comment