Thursday 3 January 2013

राजनेताओं का बलात्कार के खिलाफ़ आवाज़ उठाना पीड़िताओं से मज़ाक़ करना जैसा है



राजनेताओं का बलात्कार के खिलाफ़ आवाज़ उठाना पीड़िताओं से मज़ाक़ करना जैसा है

बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसमें हमेशा महिलाएं ही पीड़ित होती हैं। बलात्कारियों को अदालत से दोष सिद्ध हो जाने के बाद ही सरकारी तौर पर बलात्कारी माना जाता है और भारत में बलात्कार करना जितना आसान है उसको दोषी साबित करना उतना ही कठिन है। इस अपराध की पीड़िता अकेली पुलिस में केवल इसलिए शिकायत करने ही हिम्मत नहीं जुटा पाती क्योंकि पुलिस स्टेशन पहुँचने में तो कोई दिक्क़त नहीं होती परन्तु उसके बाद उसको अंदेशा रहता है कि जिस बात की शिकायत वह लेकर पहुंची है कहीं वह काम उसके साथ पुलिस स्टेशन में न दोहरा दिया जाय। अब ऐसी छवि वाली पुलिस जिस तरह की विवेचना करके अदालत तक केस पहुंचाती है उसमें शातिर किस्म के आरोपी से साठ गाँठ करके कुछ ऐसी त्रुटियाँ छोड़ दी जाती हैं जिनकी बुनियाद पर दोष सिद्ध न होने के कारण आरोपी बरी हो जाता है।


मायावती ने बयान दिया है कि उनकी पार्टी (ब.स.पा.) किसी बलात्कारी को चुनाव में टिकिट नहीं देगी। उनको देश की न्यायायिक व्यवस्था पर कितना ज़बरदस्त भरोसा है यह क़ाबिले तारीफ़ है। इसी भरोसे के बल पर उनको यह यक़ीन है कि अगर किसी बलात्कारी को टिकिट दे दिया जाय तो उसका फ़ैसला तो होना नहीं है और अगर होता भी है तो गवाह इस लायक़ ही न छोड़े जायेंगे कि गवाही दे सकें और मुजरिम को सज़ा हो सके।

इस बात के सबूत में एक ही उदाहरण काफी है। दो भाइयों के ख़िलाफ़ बलात्कार और फिर हत्या का आरोप था। मायावती द्वारा उनमें से एक भाई को उ. प्र. विधानसभा के चुनाव में टिकिट दिया और वह MLA बन गया इसके बाद जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए तो दूसरे भाई को वहां टिकिट दिया परन्तु वह हार गया। न्यायायिक प्रक्रिया का यह हाल है कि एक अवधि (term) पूरी करने के बाद अब वह दोबारा भी विधायक चुना जा चुका है लेकिन अदालत में अभी तक मुक़द्दमे की सुनवाई सुचारू रूप से नहीं चल सकी है। मायावती जी उसी इलाक़े की रहने वाली हैं इसलिए अपने विधायक के चरित्र से अनभिज्ञ नहीं होंगी।

हमारे देश की महिला राजनीतिज्ञों की पसन्द जब बलात्कारी होंगे तो वह किस प्रकार बलात्कार के खिलाफ़ आवाज़ उठायेंगी। इस प्रकार से जब हर बड़ी पार्टी में बलात्कारी मौजूद हैं तो क्या राजनेताओं का बलात्कार के खिलाफ़ आवाज़ उठाना पीड़िताओं से मज़ाक़ करने जैसा नहीं है?

(courtsy .. fm the FB post of Faizur Rahman)

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