Friday 23 November 2012

A Poem -- हांथों में जिन के




हांथों में जिन के ,
बसंत की रौनक , और
गुलाब की खुशबू ,
बिखरी पडी रहती  थी ,
अधरों पर जिन के , हमेशा
मुस्कान टंगी रहती थी,
वे भी , मित्र
आज जब मौसम बदला तो ,
दे के सौगात पतझड़ की , मुझे
दम भरते भरते दोस्ती का, कहीं  चले गए !!

मैं ठगा, कभी उन्हें ,
और कभी आसमान देखता रहा !
नियति है यह , या दस्तूर -ए -दुनिया ,
सोच रहा हूँ क्या नाम दूं  इसे ......

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